सामना संवाददाता / मुंबई
करोड़ों रुपयों के घाटे की वजह से न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक संकट में आ गया है। पिछले पांच वर्षों में इस बैंक का प्रबंधन भाजपा से जुड़े लोगों के हाथों में चला गया है, जिससे बैंक के प्रबंधन का बुरा हाल हो गया है। भाजपा से जुड़े लोगों ने बोर्ड पर नियमों के बाहर कर्ज देने के लिए दबाव डाला और करोड़ों रुपए के कर्ज बांट दिए। जिन्होंने बैंक से कर्ज लिया, उन्होंने उसे वापस नहीं किया। इसके कारण न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक आर्थिक संकट में आ गया है। मुंबई के एक भाजपा विधायक ने बैंक की शाखा के लिए अपनी खुद की संपत्ति को किराए पर देने के लिए बोर्ड पर दबाव डाला, जो राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय है।
न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर आरबीआई द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के कारण बैंक के जमाकर्ता और खाताधारक परेशान हो गए हैं। हालांकि, पिछले दो-तीन वर्षों से इस बैंक में गड़बड़ी शुरू हो गई थी, जो बैंक द्वारा प्रस्तुत वार्षिक रिपोर्ट पर बैंक के बोर्ड को देखकर सामने आ रहा है। बैंक के संस्थापक रणजीत भानू शुरुआती दौर में बोर्ड में थे। उसके बाद उनका बेटा बोर्ड में आया और उसने भाजपा के लोगों से संबंध बनाकर न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक का प्रबंधन बर्बाद कर दिया। भाजपा विधायक राम कदम का भी बैंक के आर्थिक संकट में आने से सीधा संबंध होने की बात कही जा रही है। कर्ज से आने वाला ब्याज, जमा पर ब्याज से ही बैंक का लाभ होता है, लेकिन इस बैंक में खराब कर्ज का अनुपात बढ़ गया। बोर्ड भ्रष्ट हो गया। खराब कर्ज का प्रतिशत पांच प्रतिशत से आगे जाते ही आरबीआई बैंक को खतरे में मानती है, लेकिन न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में यह अनुपात १५ प्रतिशत से ऊपर जाने की संभावना व्यक्त की गई है। इसके लिए बैंक के पूरे बोर्ड को जिम्मेदार ठहराया गया है। यह आरोप बैंकिंग विशेषज्ञ विश्वास उटगी ने व्यक्त किया है। उन्होंने बताया कि साल २०२० के बाद महाराष्ट्र में लगभग १५० को-ऑपरेटिव बैंक बंद हो गए और देश में २५० से अधिक बैंक डूब गए।
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