पंकज तिवारी
रात-रात भर कांपते, बच्चे बड़े बुजुर्ग।
कोहरे के आतंक से छिपे गांव घर दुर्ग।।
सर्द-सर्द मौसम हुआ, शीत-शीत चहुंओर।
बिस्तर में बुधना पड़ा, लखे धूप की ओर।।
सर्द रात भय को जने, जने-जने डरि जात।
सिहर-सिहर जन जा रहे, फुटपाथों की रात।
छिपे खेत खलिहान सब, है कुहरे से जंग।
सूरज आखिर है कहां? लोग हुए हैं दंग।।
बुढ़ऊ कोने में पड़े, कोहरे से भयभीत।
जने-जने से कह रहे, कर कउड़ा से प्रीत।।
काम धाम ठप हो गया, बंद हुआ स्कूल।
बस अलाव की लत रही, सारे काम फिजूल।।