नौशाबा परवीन
ट्रंप टैरिफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वॉशिंगटन में कदम रखते ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ट्रूथ सोशल पर पोस्ट किया, ‘आज बड़ा व महत्वपूर्ण दिन है। पारस्परिक टैरिफ!’ दूसरे शब्दों में ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री से अपनी मुलाकात से पहले ही अपना एजेंडा तय कर दिया था। अब देखना यह था कि ‘ट्रंप टैरिफ’ पर नई दिल्ली की प्रतिक्रिया क्या रहेगी, क्योंकि उसी से ही भारत-अमेरिका के संबंध परिभाषित होने थे। बहरहाल, जब व्हाइट हाउस में मोदी व ट्रंप की मुलाक़ात हुई तो भारत ने टैरिफ बनाम टैरिफ के जाल में फंसने की बजाय इकोनॉमिक डिप्लोमेसी को वरीयता दी और दोनों ने उस समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत अब अमेरिका भारत का टॉप आयल व गैस सप्लायर बन जाएगा। इस टैरिफ तनाव के बीच भारत-अमेरिका में २०३० तक ५०० बिलियन डॉलर के व्यापार सहमति के साथ ही रक्षा सहमति भी बनी है, जिसकी डिटेल बाद में तय होगी। अमेरिका ने भारत को ‘स्टेट-ऑफ-द-आर्ट फाइटर जेट्स’ बेचने का भी ऑफर दिया है।
एक तीर कई निशान!
अगर गौर से देखा जाए तो मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा करके ट्रंप ने वह कुछ हासिल कर लिया है, जो वह चाहते थे। अमेरिका का गुड्स में ग्लोबल व्यापार घाटा १ ट्रिलियन डॉलर से अधिक है। ट्रंप का मानना है कि अधिक टैरिफ थोपकर वह घरेलू निर्माण को प्रोत्साहित करेंगे और जो अमेरिकी कंपनियां अपनी निर्माण गतिविधियां दूसरे देशों में ले गर्इं थीं, वह भी अमेरिका में अपनी पैâक्ट्री फिर से स्थापित करने लगेंगी। हालांकि, टैरिफ युद्ध से घरेलू महंगाई बढ़ने की आशंका रहती है और ग्लोबल सप्लाई चेन भी प्रभावित होती है, लेकिन विशुद्ध व्यापारी ट्रंप ग्लोबल सप्लाई चेन के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं कि वह अमेरिका को किस तरह से लाभ पहुंचा सकती हैं। दरअसल, ट्रंप का व्यवहार इतना मूर्खतापूर्ण नहीं है, जितना कि दिखाई देता है। वह अच्छी तरह से जानते हैं कि इंडो-पैसिफिक में चीन को काबू में रखने के लिए अमेरिका व भारत को एक-दूसरे की जरूरत है। अमेरिकी कांग्रेस में इसके लिए द्विपक्षीय समर्थन है। साथ ही दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध भी मजबूत होते जा रहे हैं। २००७ के बाद से अमेरिका की भारत को डिफेंस सेल्स २५ बिलियन डॉलर पार कर चुकी है। यह सिर्फ संख्या ही नहीं है, बल्कि गुणवत्ता भी है – स्ट्रेटेजिक प्रोजेक्ट्स जैसे आर्म्ड प्रीडेटर ड्रोन और जेट इंजन।
इसके अतिरिक्त, चूंकि भारत ११४ नए मल्टी-रोल फाइटर्स भी खरीद रहा है इसलिए ट्रंप की नई दिल्ली में दिलचस्पी बनी हुई है। इसका अर्थ यह है कि भारत अमेरिका के संबंध टैरिफ युद्ध से बढ़कर हैं और इस बात का ख्याल दोनों नेताओं ने रखा। ट्रंप के तथाकथित पागलपन में एक निश्चित योजनाबद्ध तरीका अन्य मामलों में भी दिखाई दे रहा है। उन्होंने फोन पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करने के बाद कहा कि यूक्रेन को न तो अपना पूरा क्षेत्र वापस मिलेगा और न ही वह नाटो का सदस्य बनेगा। इस घोषणा के तुरंत बाद रूस के वित्तीय बाजारों में तेजी आ गई, विशेषकर इस संभावना से कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप की सबसे घातक जंग, जो अब चौथे वर्ष में प्रवेश करनेवाली है के लिए शांति वार्ता हो सकती है। इसमें आश्चर्यजनक दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप ने कहा है कि पुतिन से उनकी शांति वार्ता सऊदी अरब में हो सकती है, जहां वह जाएंगे और पुतिन भी आएंगे। गौरतलब है कि दोनों ट्रंप व पुतिन के सऊदी अरब के राजकुमार मुहम्मद बिन सलमान (एमबी एस), जो वहां के डी-फक्टो शासक हैं, से गहरे संबंध हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध की शांति वार्ता में प्रनुख भूमिका निभाने के कारण एमबीएस की ग्लोबल लीडर के रूप में हैसियत बढ़ जाएगी और उनका प्रभाव पश्चिम एशिया से भी बाहर महसूस किया जाएगा। वह एक ऐसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में सामने आएंगे, जो दो शक्तिशाली देशों को वार्ता मेज पर लाने में सक्षम हैं।
दरअसल, सऊदी अरब को वार्ता का वेन्यू दो विशेष कारणों से ट्रंप ने चुना है। एक अमेरिकी टीचर मार्क फोगेल को रिहा कराने में सऊदी अरब की महत्वपूर्ण भूमिका थी। फोगेल को अगस्त २०२१ में रूस ने मेडिकल मारीजुना लाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। दूसरा यह कि पश्चिम एशिया में इजराइल और फिलिस्तीन विवाद के संदर्भ में ट्रंप जो अपने मंसूबे बनाए हुए हैं, वह बिना सऊदी अरब की मदद के साकार होना लगभग असंभव है। गौरतलब है कि इजराइल ने ट्रंप के समर्थन से हमास के विरुद्ध गाजापट्टी में फिर से जंग शुरू करने की धमकी दी थी अगर वह तीन अन्य बंधकों को निर्धारित समय पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता। अब हमास ने कहा है कि वह बंधकों को रिहा कर देगा, क्योंकि मिस्र व कतर ने उसे आश्वासन दिया है कि युद्धविराम को लागू करने में जो बाधाएं आ रही थीं, उन्हें हटा दिया जाएगा। कतर सऊदी अरब के कहने पर चलता है। इस सबसे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि ट्रंप घर पर और विदेश में हर दिशा में निशाना लगा रहे हैं जब से ट्रंप का दूसरा कार्यकाल आरंभ हुआ है वॉशिंगटन श्रेणी-५ तूफान के बीच में है। अमेरिका का रूप बदल रहा है और वह ‘जाने अनजाने’ क्षेत्र में प्रवेश करता जा रहा है, जिसका ग्लोबल व्यवस्था पर स्ट्रक्चरल व आर्थिक प्रभाव पड़ेगा। एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स पर हस्ताक्षर करने के साथ ही ‘गल्फ ऑफ अमेरिका’ पर उड़ान भरते हुए ट्रंप कमेंटरी भी कर रहे हैं कि फिलिस्तीनियों को गाजा छोड़कर चला जाना चाहिए, ताकि वह उसे ‘रिवेरा ऑफ द मिडिल ईस्ट’ बना सकें, वह मिस्र व जॉर्डन को दी जाने वाली ऐड में कटौती करने की धमकी दे रहे हैं और अमेरिकी सरकार के बड़े हिस्से को उखाड़ रहे हैं।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)