मुख्यपृष्ठनए समाचारसंपादकीय : लाडली बहनों पर ‘भाईगीरी'!

संपादकीय : लाडली बहनों पर ‘भाईगीरी’!

‘मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं’ राजनेताओं का पसंदीदा मंत्र है। महाराष्ट्र में ‘लाडली बहन’ योजना की लाभार्थी महिलाएं इस समय इस मंत्र के कड़वे अनुभव से गुजर रही हैं। चुनाव से पहले जिस ‘लाडली बहन’ योजना को लेकर सरकार आई थी, अब चुनाव के बाद उसी योजना को वही सरकार खत्म कर रही है। १,५०० रुपए प्रतिमाह का लालच देकर चुनाव जीतने के बाद सरकारी भाइयों के दिल में बहनों के लिए प्यार कम होने लगा है और अब यह सरकार नियमों का डंडा उठाकर ‘भाईगीरी’ पर उतर आई है। सरकार ने हर महीने नए नियम और नियम लागू कर महाराष्ट्र में लाडली बहनों की संख्या कम करने पर उतर आई है। पिछले डेढ़ महीने में ‘लाडली बहन’ योजना से पांच लाख महिलाओं के नाम बाहर होने के बाद अब और चार लाख महिलाओं को योजना से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। लगभग नौ लाख महिलाओं को अयोग्य घोषित कर उनके नाम योजना से हटा दिए गए हैं, ऐसा कहा जा रहा है कि इसकी वजह से सरकारी खजाने पर भारी बोझ कम हो गया है। नौ लाख लाडली बहनों को योजना से हटाने के बाद सरकार के ९४५ करोड़ रुपए बच गए हैं। इसके अलावा, चूंकि लाडली बहनों की उपयोगिता कम से कम पांच साल के लिए खत्म हो गई है इसलिए सरकार में बैठे ‘भाई साहब’ यह जुगत लगाने में भिड़ गए हैं कि कितनी और महिलाओं के नाम इस योजना से कम किए जा सकते हैं, इसके लिए क्या नए
नियम या कठोर शर्तें
ढूंढ़ी जा सकती हैं। जो महिलाएं विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ उठाती हैं और जिनकी आय २.५ लाख रुपए से अधिक है, उन्हें इस योजना से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। योजना की महिला लाभार्थियों की आय ढाई लाख से अधिक है या नहीं? इसकी जांच के लिए सरकार सीधे इनकम टैक्स महकमे की मदद लेगी। इसके अलावा कई महिलाओं के आवेदनों की दोबारा जांच की जा रही है। अयोग्य महिलाओं को पिछले छह माह से दिए गए पैसे वापस नहीं लिए जाएंगे, इस तरह से बोलकर सरकार यूं दर्शा रही है जैसे वह उन पर उपकार कर रही है, लेकिन सरकार को अब इसका जवाब देना होगा कि योजना की घोषणा करते वक्त सरकार ने ये नियम, मानदंड और शर्तें क्यों नहीं रखीं और चुनाव के बाद ही लाभार्थी महिलाओं की समीक्षा करने का क्या कारण है? प्राप्त जानकारी के अनुसार, अगले कुछ दिनों में लाभार्थी महिलाओं की संख्या को घटाकर १५ लाख करने और चरणबद्ध तरीके से इस योजना में लाभार्थी महिलाओं की संख्या में कटौती करने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। फिलहाल, महाराष्ट्र सरकार पर करीब ८ लाख करोड़ का कर्ज है। ऐसे वक्त में जब सरकार का इस कर्ज का ब्याज चुकाते-चुकाते दम निकल रहा था सिर्फ महिला मतदाताओं का वोट खींचने के लिए हुक्मरानों ने विधानसभा चुनाव के ऐन पहले ‘लाडली बहन’ योजना शुरू की। इस योजना के सालाना ४६ हजार करोड़ रुपए के खर्च से महाराष्ट्र सरकार की
अर्थव्यवस्था कोमा में
चली गई है। सरकार के पास स्वास्थ्य योजनाओं के लिए पैसा नहीं बचा है। गरीब मरीजों के लिए बनाई गई योजनाओं के सैकड़ों करोड़ रुपयों के बिल प्राइवेट अस्पतालों को नहीं चुकाए गए हैं। सरकार के पास किसानों को मदद के तौर पर घोषित रकम का भुगतान करने के लिए भी पैसा नहीं बचा है। राज्य के तमाम ठेकेदारों के बिल भी लंबित हैं। सभी विकास कार्य ठप पड़े हैं। जिसके चलते सरकार को होश आया है। सत्ता हासिल करने के लिए बहनों के वोट का इस्तेमाल करने के बाद सरकार ने पहली कुल्हाड़ी ‘लाडली बहन’ चलाई वह इसी योजना पर। सरकार के मुखिया माने या न माने, लेकिन पिछले ढाई साल में अव्यवस्थित शासन, भ्रष्टाचार और सरकारी तिजोरी की खुली लूट के चलते महाराष्ट्र सरकार गंभीर वित्तीय संकट में फंस गई है। इस संकट से उबरने के लिए सरकार ने अब बहुप्रचारित ‘लाडली बहन’ योजना के पर कतरने शुरू कर दिए हैं। लोकसभा चुनाव हारने के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीतने के लिए शिंदे मंडली और भाजपा महागठबंधन द्वारा शुरू की गई ‘लाडली बहन’ योजना ‘वैâश फॉर वोट’ का ही एक रूप थी। अब जब चुनाव खत्म हो गए तो सरकार नाम का बदमाश भाई नियम-कायदों का चाबुक लेकर ‘लाडली बहन’ योजना पर टूट पड़ा है। अपनी ही योजना का पोस्टमार्टम कर हर माह लाडली बहनों की संख्या कम की जा रही है। सरकार की यह ‘भाईगीरी’ महाराष्ट्र की लाडली बहनें देख रही हैं न?

अन्य समाचार

मुस्कान