कविता श्रीवास्तव
महाराष्ट्र में फ्रीबीज यानी मुफ्त योजनाओं का चुनावी हथकंडा अब सरकार के बजट पर भारी पड़ रहा है। महिलाओं के खाते में रकम डालने की लाडली बहन योजना में अब छंटनी शुरू हो गई है। इसमें कई नाम कट गए हैं। अभी और कटने की संभावना है। इसी बीच राज्य परिवहन की बसों में महिलाओं और बुजुर्गों को दी जाने वाली रियायत को लेकर नया बवाल उठा है। चुनावी लाभ के लिए महिलाओं और बुजुर्गों के लिए एसटी बस के किराए में ५० फीसदी रियायत की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने की थी। अब परिवहन विभाग देख रहे उन्हीं के मंत्री प्रताप सरनाईक ने स्पष्ट किया है कि यदि ये रियायतें जारी रहीं तो एसटी परिवहन को चलाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इससे प्रतिदिन ३०० करोड़ रुपए की हानि हो रही है। उनका यह कथन सिद्ध करता है कि इस योजना को लागू करने के पहले भरपूर तैयारी नहीं की गई। मंत्री की दलील यही बताती है कि राज्य परिवहन की बसों को चलाने के लिए पर्याप्त कोष नहीं है। इसी तरह चुनावी लाभ के लिए आनन-फानन में लागू की गई अनेक योजनाएं राजकोष पर भारी पड़ रही हैं। यह किसी एक राज्य की बात नहीं है। कई राज्यों में यही स्थिति है। सरकारी कोष में आवक कम है और खर्च अधिक है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में चुनावी रेवड़ियां बांटने की वजह से राजकोष बहुत घाटे में है। पंजाब, हिमाचल, कर्नाटक में भी हालत ऐसी ही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी विभिन्न प्रâीबीज पर प्रतिकूल टिप्पणी की है। सरकारों द्वारा जनता के हितों के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। यह जरूरी भी है। एक्सपर्ट कहते हैं कि गरीबों को मदद पहुंचाकर उनका जीवन स्तर सुधारने की योजनाएं बनाई जानी चाहिए। उनमें मुफ्तखोरी की आदत डालकर उन्हें हमेशा गरीब बनाए रखना ठीक नहीं है। यह तो उन्हें पंगु बनाने जैसा है। योजनाएं उनके जीवन स्तर को सुधारें ऐसी बननी चाहिए, लेकिन राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने और मतदाताओं को लुभाने के लिए अनाज, साइकिल, लैपटॉप व अनेक सामग्री वर्षों से बंटती रही हैं। बीते कुछ वर्षों में लोगों के खाते में सीधे रकम डालने की योजनाएं भी खूब लागू हुई गई हैं। इन योजनाओं का बोझ अंतत: उन लोगों पर पड़ता है, जो इमानदारी से अपना टैक्स भरते हैं। इनमें अधिकांश नौकरीपेशा मध्यमवर्गीय या निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के लोग हैं। वे किसी योजना का लाभ भी नहीं उठाते हैं। दूसरी ओर एक बहुत बड़ी जनसंख्या है जो बिजली, पानी, अनाज आदि मुफ्त लेने की आदी होती जा रही है। जरूरतमंदों को लाभ अवश्य मिलना चाहिए, लेकिन राजकोष पर अनावश्यक बोझ बढ़ाना जनहित में नहीं है। इससे तो बेहतर है कि बिजली, पानी, अनाज, इलाज आदि सभी टैक्स भरने वालों के लिए मुफ्त कर दिया जाए।