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अधर्मियों का साया

यहां अधर्मियों का साया है,
यहां एक विचित्र माया है।
सब के मुखमंडल पर उदासी है,
यहां एक अजीब सी खामोशी है।
हम बढ़ रहें एक घोर अंधकार की ओर,
अब नहीं चल रहा धर्मात्माओं का जोर।
पथिक अब भटक रहा,
बहुत कुछ अब सहन कर रहा।
यहां राज है दुष्टों का,
आम आदमी के सिर पर ताज है कष्टों का।
मानव जीवन हुआ दुश्वार,
चहुं ओर फैला अत्याचार।
बदल गए सबके व्यवहार,
नहीं रहा अब परोपकार।
जिंदगी में कई झमेले हैं,
अपनों के साथ रहकर भी हम अकेले हैं।
घुट रही है जिंदगी,
घट रही है जिंदगी,
समाज में बढ़ रही है गंदगी।
जीवन में अब घोर निराशा है,
अब किसी से नहीं आशा है।
कहते हैं हम सब हैं ईश्वर की संतान,
यहां पर है हर कोई शैतान।
बढ़ रहे हैं पाप,
फिर भी नहीं है पश्चाताप।
ईश्वर अब हम पर करना ये उपकार,
अब नहीं देना मानव अवतार।
-लक्ष्मीकांत रा.चौरसिया

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