नासिक : सिद्ध पिंपरी स्थित केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में मातृ भाषा दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में जीवन प्रज्ञा विद्यालय, तत्वज्ञान विद्यापीठ के पं. किशोर लिमये ने कहा कि मातृ भाषा दिवस पर भारत का छाया प्रतिबिंब देखने को मिला। क्योंकि नासिक परिसर में जो छात्र संस्कृत के अध्ययन कर रहे है वह भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आए है। वर्तमान समय में अंग्रेज़ी भाषा का महत्व दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण छात्रों के माता पिता, राजकीय व्यवस्था तथा रोजगार है। अंग्रेज़ी भाषा के विषय में बच्चों के माता -पिता का कहना है कि उच्च शिक्षा में बच्चों को अंग्रेज़ी भाषा में ही अध्ययन करना पड़ता है तो बच्चों को प्राथमिक स्तर से शिक्षा क्यों ना दिया जाय। पंडित लिमये ने यहा कहा कि अंग्रेज़ी भाषा के विकल्प के रूप में संस्कृत भाषा को यदि विकसित किया जाए तो भाषा की समस्या का हल किया जा सकता है क्योंकि संस्कृत भारत की अधिकांश भाषाओं की जननी है और सबसे प्राचीन तथा वैज्ञानिक भाषा भी है। इस अवसर पर मातृ भाषा का ऐतिहासिक परिचय शिक्षा शास्त्र विभाग की डॉ दीपांविता दास ने दी।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिसर के निदेशक श्री गोविन्द पांडेय ने कहा कि भारत के सभी भाषाओं का अपना महत्व है इसलिए स्थानीय भाषा का विकास जरूरी है तभी क्षेत्रीय संस्कृति को समझ सकते हैं ।
मातृ भाषा दिवस पर विभिन्न क्षेत्रों के 12 छात्रों ने अपनी अपनी भाषा में कहानी,भाषण एवं काव्य गीत के रूप में अपने अपने विचार व्यक्त किए। मातृ भाषा पर परिसर में निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। जिसमें आचार्य द्वितीय वर्ष का छात्र केयूर कुलकर्णी प्रथम स्थान, शिक्षा शास्त्र प्रथम वर्ष का प्रतिक दवे द्वितीय स्थान तथा शिक्षा शास्त्र द्वितीय वर्ष की छात्रा कृष्णेंदु ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। इस अवसर पर स्वागत भाषण शिक्षा शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. कुमार, धन्यवाद कार्यक्रम के सहसंयोजक श्री लक्ष्मेंद्र जबकि मंच संचालन तथा कार्यक्रम के संयोजक डॉ शैलेश पवार ने किया। इस अवसर पर सभी शिक्षक कर्मचारी और छात्र उपस्थित थे।