मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : 2013 से बिन नहाये

सटायर : 2013 से बिन नहाये

डॉ. रवीन्द्र कुमार

कई बार यह देखने में आता है कि इंसान कोई फैसला कर लेता है, कोई प्रतिज्ञा कर लेता है कि फलां काम वो तभी करेगा, जब यह हो जाएगा या वो हो जाएगा या ढिकाना काम हो जाएगा। इसी श्रंखला में एक सूबे के नेताजी ने रहस्य उदघाटन किया है कि किसी एक देश के पी.एम. 2013 में भारत आए थे गंगा स्नान करने, किंतु गंगा में तब की गंदगी देख कर उन्होंने फैसला ले लिया और वे बिन नहाये ही चले गए।
यह बात नेता जी ने मूलतः यह बताने को करी है कि 2013 की तब की गंगा और आज की 2025 की गंगा में बहुत अंतर आ गया है। बोले तो गंगा में बहुत पानी बह गया है। यूं कहने को तो कहा जाता है कि मां कभी बदलती नहीं है। चूंकि गंगा को लोगबाग मां कहते हैं और कहना चाहिए कि मां कहते थकते नहीं हैं, फिर बदलने वाली बात समझ नहीं आई। खैर ! बड़े लोगों की बड़ी बातें। दुनिया में सब कुछ कम्परेटिव (तुलनात्मक) होता है। अतः हो सकता है 2013 की तुलना में 2025 की गंगा साफ, बोले तो स्वच्छतर हो गयी हो। कोई भुक्तभोगी जिसने गंगा स्नान 2013 और 2025 दोनों में किया हो, वही इंसान इस बात की तसदीक कर सकता है।
मेरी चिंता दूसरे किस्म की है। क्या जो बाहर के मुल्क के पी. एम. आए थे, उन्होंने 2013 के बाद स्नान किया कि नहीं। बोले तो अपने घर, अपने देश लौट कर भी स्नान किया अथवा नहाने से उनका मन ही फिर गया। अब उनकी तबीयत स्नान करने की होती ही नहीं। 2013 से तो बहुत साल हो गए वो पी.एम. साब इस बार, बोले तो 2025 में तो गंगा स्नान करने आए ही नहीं। अरे कोई देख कर बताओ वो अब पी.एम. हैं भी या नहीं। मजे की बात ये है कि गंगा यदि गंदी हो गई है, प्रदूषित हो गई है तो इसकी जवाबदारी भी हमारी ही है। अर्थात गंदी हो या साफ दोनों हम इंसानों ने ही करना है। मैंने तो जब से होश संभाला है यही सुना है कि गंगा को साफ करना है। तरह-तरह की स्कीमें, कई तरह की योजनाएं। स्थायी- अस्थायी निकाय बनाए गए हैं। बोले तो मंत्री-संतरी सब ही हैं। मां गंगा के पुण्य-प्रताप से गंगा के नाम पर फंड की कोई कमी नहीं, पर फिर भी गंगा है कि सम्पट में नहीं आ रही है।
गंगा साफ कराते-कराते न जाने कितने नेता साफ हो गए। तरक्की की सीढ़ियां चढ़ गए, मगर गंगा जस की तस बल्कि लोग कहते हैं और अधिक प्रदूषित हो गई है। गंगा ने न जाने कितनी फिल्में और कितने गीतों को प्रेरणा दी है। वो कहते हैं न गुरु गुड़ ही रह गए और चेला शक्कर हो गया। गंगा के नाम पर लोग बन गए, गंगा वहीं की वहीं। आप देखो तो गंगा का काम ही लोगों को तारने का है। सो तारे जा रही है। लोग मचल रहे हैं गंगा हमें भी बुला ले। काश, हमें भी गोद ले ले तो वारे-न्यारे हो जाएं। पर इतना आसान नहीं है। गोद लेने की प्रक्रिया बहुत क्लिष्ट होती है। नदियों पर खूब बड़े-बड़े थीसिस लिखे गये हैं। समय आ गया है कि गंगा पर भी लिखा जाए कि कैसे गंगा लोगों को तारती आ रही है। लोग गंगा स्नान करके कहां से कहां पहुंच गए। अब कोई पी.एम. नहाना ही नहीं चाहे तो उसे कौन नहला सकता है। बचपन में मां-बाप मुझे बाथरूम भेजते थे तो मैं बस नल चला देता था और थोड़े छींटें मारके तौलिया से बदन पोंछता हुआ बाहर निकलता था। सब समझते थे मैं नहा लिया। ऐसे ही ये पी.एम. महोदय जो बाहर-गांव से आए थे, उन्होने कुछ किया होगा। मेरी जिज्ञासा और किस्म की है: ये आगंतुक पी.एम. 2013 के बाद नहाये भी हैं या नहीं ?

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