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ग्राम सहकारी समितियों की आड़ में चल रही अवैध बैंकिंग: कौन लेगा जिम्मेदारी?

जयपुर। श्रीगंगानगर जिले के जैतसर में सामने आए 8.97 करोड़ के गबन ने न सिर्फ राजस्थान बल्कि पूरे देश के ग्रामीण बैंकिंग सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सहकारी समितियों की आड़ में चल रहे ये मिनी बैंक असल में कौन से नियमों के तहत संचालित होते हैं? क्या ये भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दायरे में आते हैं? अगर हां, तो फिर इतनी बड़ी धोखाधड़ी कैसे हो गई? अगर नहीं, तो फिर इन्हें “बैंक” शब्द के इस्तेमाल की अनुमति किसने दी?

ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी बैंकों की शाखाएं कम होने की वजह से लोग सहकारी समितियों की ओर रुख करते हैं, लेकिन जब ऐसी संस्थाएं ही लोगों की गाढ़ी कमाई डुबोने लगे, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? हजारों लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई इन सहकारी बैंकों में यह सोचकर जमा की थी कि उन्हें अच्छा ब्याज मिलेगा, लेकिन अब उनके जीवनभर की पूंजी लुट चुकी हैं।

सबसे बड़ा सवाल यह हैं कि क्या सरकार और प्रशासन इस तरह की वित्तीय संस्थाओं पर कोई निगरानी रखते हैं? क्या RBI का कोई नियंत्रण इन सहकारी समितियों पर हैं? अगर नहीं, तो क्यों नहीं? और अगर हैं, तो फिर इतनी बड़ी धोखाधड़ी कैसे हुई? क्या यह लापरवाही नहीं, बल्कि मिलीभगत का नतीजा हैं?

गांवों में चल रही इन तथाकथित बैंकों की सच्चाई क्या हैं? क्या यह सिर्फ सहकारी समितियों का नाम लेकर छोटे स्तर पर चल रही वित्तीय संस्थाएं हैं, जो अपनी मर्जी से जमा और ऋण का खेल खेल रही हैं? क्या इनका कोई ऑडिट होता है? अगर RBI इनके कामकाज की निगरानी नहीं करता, तो फिर कौन करता हैं?

सवाल यह भी उठता हैं कि जब लोगों की मेहनत की कमाई डूबती हैं, तो सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती हैं? क्या जिन गरीब मजदूरों, किसानों और बुजुर्गों ने अपनी जमा पूंजी यहां लगाई थी, उन्हें कोई न्याय मिलेगा? क्या इन संस्थाओं को चलाने वाले अधिकारियों और बैंक कर्मचारियों पर कोई ठोस कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी अन्य वित्तीय घोटालों की तरह समय के साथ दब जाएगा?

यह सिर्फ जैतसर की बात नहीं है। देशभर में ऐसी हजारों सहकारी समितियां और पटपेढ़ियां बिना किसी सख्त नियमन के काम कर रही हैं। कहीं ये चिटफंड कंपनियों की तरह लोगों के पैसे लूट रही हैं, तो कहीं फर्जी बैंकों के नाम पर भोले-भाले ग्रामीणों को झांसे में लेकर उनका सबकुछ हड़प रही हैं। क्या अब समय नहीं आ गया है कि सहकारी समितियों की वित्तीय गतिविधियों को RBI के नियंत्रण में लाया जाए? क्या हमें यह नहीं देखना चाहिए कि बैंकिंग का नाम लेकर चल रही संस्थाएं आखिरकार किन नियमों के तहत काम कर रही हैं?

अब जरूरत हैं कि सरकार इस मामले में सख्त कदम उठाए और यह सुनिश्चित करे कि आगे से कोई भी सहकारी समिति “बैंक” शब्द का इस्तेमाल न करे जब तक कि वह पूरी तरह से RBI के नियमों का पालन न करे। साथ ही, यह भी आवश्यक है कि ऐसे गबन के मामलों में दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में कोई भी ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की आड़ में लोगों की मेहनत की कमाई को लूटने की हिम्मत न करे। वरना, यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा और हर बार नई कहानियां बनती रहेंगी—कभी जैतसर में, कभी किसी और गांव में।

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