सामना संवाददाता / मुंबई
मुख्यमंत्री लाडली बहन योजना के लिए इस साल के बजट में सरकार ने ३६ हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सरकार ने इस योजना के लाभार्थियों को पैसे वितरित करने के लिए आदिवासी विभाग और समाज कल्याण विभाग के कुल ७,००० करोड़ रुपए के फंड को लाडली बहन योजना की ओर घुमा दिया गया है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन विभागों के मंत्रियों और अधिकारियों ने इसका विरोध किया था, फिर भी उनकी अपील को नजरअंदाज कर दिया गया।
लाडली बहन योजना के लिए आदिवासी विभाग और समाज कल्याण विभाग का करीब ७,००० करोड़ रुपए का फंड लाडली बहन योजना की ओर मोड़ दिया गया है। इसमें ४,५०० करोड़ रुपए सामाजिक न्याय विभाग और ३,००० करोड़ रुपए आदिवासी विभाग के हैं। इससे दोनों विभागों में बड़ी नाराजगी देखने को मिल रही है। लाडली बहन योजना के लिए इस फंड को न मोड़े जाने की अपील सामाजिक न्याय मंत्री संजय शिरसाट ने सरकार से की थी, लेकिन उनकी अपील को ठुकरा दिया गया।
मंत्रियों की अपील को भी किया गया नजरअंदाज
आदिवासी विभाग और सामाजिक न्याय विभाग दोनों ही दलित-आदिवासी समाज के लिए काम करते हैं, इसलिए अगर इन विभागों के फंड को कहीं और मोड़ा जाता है, तो स्वाभाविक रूप से इस समाज की कल्याणकारी योजनाओं के लिए फंड की कमी हो जाएगी। इससे इन समाजों के लिए चल रही योजनाओं को बड़ा झटका लग सकता है। यह एक संवैधानिक प्रावधान का भी उल्लंघन है, क्योंकि नियमानुसार, इन विभागों के फंड को कहीं और नहीं मोड़ा जा सकता। फिर भी बजट में इसके लिए प्रावधान किया गया है, जिससे सरकार को बड़ी आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।
फंड मोड़े जाने के मुद्दे पर संजय शिरसाट ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि नियम यह है कि सामाजिक न्याय विभाग व आदिवासी विभाग का फंड कहीं और मोड़ा नहीं जा सकता है। नियमानुसार, सरकार को यह फंड देना अनिवार्य है, लेकिन अब बजट में हमारे विभाग के फंड को कहीं और मोड़े जाने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। इसलिए इस बजट पर चर्चा के दौरान वित्त मंत्री का स्पष्टीकरण क्या होगा? इस पर हमारा फोकस होगा। हम वित्त मंत्री अजीत पवार से यह फंड न मोड़ने की अपील करेंगे।