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डॉ. राही मासूम रजा की 33वीं पुण्यतिथि

सामना संवाददाता / मुंबई

आज 15 मार्च को प्रसिद्ध साहित्यकार एवं सिने लेखक डॉ. राही मासूम रजा की 33वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर पद्मश्री’, पद्म भूषण सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित डॉ. राही की एक रचना प्रस्तुत है…
सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन
इश्क तराजू तोहै, लेकिन, इस पे दिलों को तौले कौन
सारा नगर तो ख्वाबों की मैयत लेकर श्मशान गया
दिल की दुकानें बंद पडी़ है, पर ये दुकानें खोले कौन
काली रात के मुंह से टपके जाने वाली सुबह का जूनून
सच तो यही है, लेकिन यारों, यह कड़वा सच बोले कौन
हमने दिल का सागर मथ कर काढ़ा तो कुछ अमृत
लेकिन आयी, जहर के प्यालों में यह अमृत घोले कौन
लोग अपनों के खूं में नहा कर गीता और कुरान पढ़ें
प्यार की बोली याद है किसको, प्यार की बोली बोले कौन।
राही मासूम रजा 1 सितंबर, 1927 गाजीपुर- निधन : 15 मार्च, 1992 मुंबई।
डॉ. राही बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी एवं प्रसिद्ध साहित्यकार थे। राही मासूम रजा का जन्म संपन्न एवं सुशिक्षित शिया परिवार में हुआ। राही के पिता गाजीपुर की जिला कचहरी में वकालत करते थे। डॉ. राही मासूम रजा का निधन 15 मार्च, 1992 को मुंबई में हुआ।
दूरदर्शन के लिए बी आर चोपड़ा द्वारा बनाई गई ‘महाभारत’ के संवाद लेखन के रूप में डॉ. राही सदैव याद किए जाएंगे। उनकी रचनाएं हमारी उस गंगा-जमुनी संस्कृति की प्रतीक हैं, जो वास्तविक हिंदुस्थान की परिचायक है।
कुछ प्रमुख कृतियां-आधा गांव, टोपी शुक्ला, हिम्मत जौनपुरी, ओस की बूंद, दिल एक सादा कागज, अजनबी शहर : अजनबी रास्ते, मैं एक फेरी वाला गरीबे शहर।

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