सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र के सरकार ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करने के लिए एक नया विधेयक लाने का पैâसला किया है। इस बिल के जरिए आम लोगों से सरकार के खिलाफ बोलने का अधिकार छीन लिया जाएगा। यह सनसनीखेज जानकारी राकांपा (शरदचंद्र पवार) पक्ष की सांसद सुप्रिया सुले ने दी।
उन्होंने कहा कि वास्तव में स्वस्थ लोकतंत्र में असहमतिपूर्ण राय का सम्मान किया जाता है। लोकतंत्र का सिद्धांत भी विपक्ष की राय को महत्वपूर्ण मानता है, विपक्ष की आवाज इस बात का ध्यान रखती है कि सरकार बेलगाम न हों, वे जनमत का सम्मान करें। लेकिन उक्त `महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम’ विधेयक में `गैरकानूनी कृत्य’ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी एजेंसियों को असीमित शक्तियां प्रदान की गई हैं। इसके माध्यम से सरकार को `पुलिस राज’ स्थापित करने का लाइसेंस मिल जाएगा और इसका दुरुपयोग उन व्यक्तियों, संस्थानों या संगठनों के खिलाफ किया जा सकता है, जो सरकार के खिलाफ हैं। लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से हम रचनात्मक विरोध व्यक्त कर रहे हैं। इस विधेयक से लोगों की अवधारणा भी कमजोर होगी।
सुले ने कहा कि प्रशासन को असीमित शक्तियां दी जाएंगी इसलिए किसी भी व्यक्ति को केवल प्रतिशोध की भावना से परेशान किया जा सकता है। सरकार की नीतियों, निर्णयों की आलोचना करना या शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करना गैरकानूनी कृत्य माना जा सकता है। यह विधेयक इस देश में वैचारिक विविधता के सिद्धांतों का सम्मान नहीं करता है और सीधे तौर पर नागरिकों के संवैधानिक मौलिक अधिकारों को कमजोर करेगा। इतना ही नहीं, इस बिल के जरिए सरकार को कुछ जगहों पर न्यायिक प्रक्रिया में दखल देने का अधिकार भी मिल जाएगा। इससे न्यायपालिका की संप्रभुता पर भी हमला होगा।
विधेयक के मसौदे की एक बार फिर समीक्षा करें
उन्होंने कहा कि विधेयक के कुछ प्रावधान सीधे तौर पर संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। अंग्रेजों ने अपने शासन काल में ऐसा ही कानून (रौलेक्ट एक्ट) लाने का प्रयास किया था। यह विधेयक संविधान के मूल सिद्धांतों को नकारने वाला है और हम इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। सरकार से अनुरोध है कि कृपया इस विधेयक के मसौदे की एक बार फिर से समीक्षा करें और सुनिश्चित करें कि इसके माध्यम से संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो, ऐसा भी सुले ने कहा।