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‘लाडली छात्राएं’ हो रही शिक्षा से दूर … १.६५ लाख बच्चियों ने छोड़ा स्कूल!

शिक्षा बजट में १२ फीसदी होगा कम खर्च

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महायुति सरकार की शिक्षा नीति में खामियों का असर बच्चों पर पड़ रहा है। जानकारी के अनुसार, बजट में शिक्षा पर प्रस्तावित निधि के खर्च में कमी आई है। यह खर्च १२.१५ फीसदी कम हुआ है। फंड को खर्च न किए जाने से महाराष्ट्र में पढ़ाई का स्तर भी गिरता जा रहा है। इसका असर ‘लाडली छात्राओं’ पर भी पड़ रहा है। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, एक साल में १,६४,७७३ लाडली छात्राओं ने न केवल स्कूलों को छोड़ा, बल्कि वे शिक्षा से भी दूर हुई हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष २०२३-२४ के आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में कुल १,०८,२३७ स्कूलों में ७,३८,११४ अध्यापक कुल २,१३,७५,९५० छात्रों के भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं। बीते चार सालों में छात्रों की संख्या के साथ ही अध्यापकों की संख्या में कमी आई है। इन वर्षों में सभी स्कूलों में ३२,०११ अध्यापक कम हुए हैं। दूसरी तरफ राज्य में ८,१९६ ऐसे स्कूल हैं, जहां बच्चों को पढ़ाने के लिए केवल एक ही शिक्षक नियुक्त है। इससे यहां पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य अंधकारमय होता हुआ नजर आ रहा है। इस समस्या को दूर करने की बजाय महायुति सरकार केवल ओछी राजनीति और निम्न स्तर की छींटाकशी में ही मग्न है। साथ ही छात्रों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। कुल मिलाकर सराकर देश के भविष्य को उज्ज्वल बनाने वाले छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करती हुई दिखाई दे रही है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लाडली छात्राएं स्कूलों को छोड़ रही हैं। इनमें केवल छठी से १०वीं तक की कक्षाओं की छात्राओं का समावेश है।

शिक्षा पर सबसे कम फंड खर्च
बताया गया है कि सात वर्षों में शिक्षा पर औसतन १५.१२ फीसदी फंड उपलब्ध हुआ। इसमें राज्य सरकार ने वर्ष २०१७-१८ में सबसे ज्यादा १६.०१ फीसदी खर्च किया था। हालांकि, वर्ष २०२२-२३ में सबसे कम यानी १४.६६ फीसदी खर्च किया गया। वहीं वित्तीय वर्ष २०२४-२५ के लिए पेश किए संशोधित बजट के मुताबिक शिक्षा पर होने वाला खर्च १२.१५ फीसदी होने का अनुमान है, जो अब तक के सबसे निचले पायदान पर होगा।

५८.२७% ने छोड़ी पढ़ाई
नौवीं-१०वीं कक्षाओं में पढ़ने वाले ५८.२७ फीसदी यानी २,११,९३६ छात्र और ४१.७२ फीसदी यानी १,५१,७६५ छात्राओं ने स्कूल छोड़ दिया। इन सबके बीच सरकार के लिए सबसे राहत भरी बात यह रही कि इस अवधि में पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में एक भी बच्चे ने स्कूल नहीं छोड़ा है। चार वर्षों में हुई खोजबीन में कुल ३८,४५९ ऐसे बच्चे मिले, जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा था। इनमें से ३६,४६१ बच्चों को राज्य के विभिन्न स्कूलों में एडमिशन करा दिया गया।

 

 

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