नागपुर दंगों का ठीकरा मुख्यमंत्री फडणवीस ने ‘छावा’ फिल्म पर फोड़ा है, जो उनका मनोबल कमजोर होने का संकेत देता है। उन्होंने घोषणा की है कि दंगों के अपराधियों को नहीं छोड़ा जाएगा। मतलब, वे क्या करेंगे? ‘छावा’ फिल्म के निर्माता, निर्देशक और औरंगजेब की भूमिका निभाने वाले कलाकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करेंगे क्या? क्योंकि ‘छावा’ फिल्म की वजह से दंगे हुए हैं। अब इस ‘छावा’ फिल्म के खास शो मुख्यमंत्री ने ही आयोजित किए थे। भाजपा और संघ परिवार की ओर से भी ‘छावा’ का प्रचार शुरू था। ‘छावा’ फिल्म के अंत में छत्रपति संभाजीराजा को औरंगजेब द्वारा निर्दयतापूर्वक मारे जाने का दृश्य भावनाओं को भड़काने वाला है। छत्रपति संभाजीराजा को औरंगजेब ने क्रूरतापूर्वक मारा, छत्रपति संभाजी महाराज ने धर्म के लिए बलिदान दिया, पर औरंगजेब के सामने झुके नहीं, यह इतिहास महाराष्ट्र को पता है। जहां छत्रपति संभाजीराजा की हत्या हुई, वहां स्मारक है। इस पर ग्रंथ, पुस्तकें, उपन्यास हैं, लेकिन उन्हें पढ़कर दंगे भड़के और लोग कुदाल-फावड़ा लेकर औरंगजेब की कब्र खोदने निकल पड़े, ऐसा कभी नहीं हुआ। संघ के श्री गोलवलकर गुरुजी और वीर सावरकर ने अपने लेखन में संभाजीराजा के बारे में अच्छा नहीं बताया। फिर भी लोगों ने दंगे नहीं किए। तो फिर एक फिल्म देखकर लोगों ने दंगे क्यों किए? मोदी काल में पाकिस्तान ने पुलवामा घटना को अंजाम देकर चालीस जवानों की निर्मम हत्या की। चीन ने भी लद्दाख प्रांत में हमारे सैनिकों का सिर कलम किया। फिर भी देश में पाकिस्तान अथवा चीन के खिलाफ आक्रोश का विस्फोट नहीं हुआ और विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल के वीर कुदाल-फावड़ा लेकर पाकिस्तानियों के तंबू उखाड़ने बाहर नहीं निकले। पुलवामा हमला हुआ था, तब नरेंद्र मोदी जिम कॉर्बेट
जंगल में ‘सफारी’ का
आनंद ले रहे थे और उनका भी खून नहीं खौला। तो फिर एक फिल्म देखकर भाजपा समर्थकों ने दंगे क्यों भड़काए? दंगा पूर्वनियोजित था, ऐसा कहना अपनी नाकामयाबी पर मुहर लगाने जैसा है। नागपुर में दंगा कुरान की आयत लिखी हुई चादर जलाए जाने की वजह से हुआ। इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया पर इस जलती हुई चादर का वीडियो जब वायरल हो रहा था तब नागपुर की पुलिस क्या कर रही थी? उन्होंने तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं की? पुलिस शांत बैठी रही। यह गृह मंत्रालय की नाकामी है। ‘पुलिस वालों शांत बैठो, मुसलमानों का गुस्सा बढ़ने दो और उन्हें दंगे के लिए सड़कों पर उतरने दो’, ऐसा किसी का आदेश था क्या? खरी-खरी बोलें तो भारतीय जनता पार्टी की नीयत साफ नहीं होने की वजह से महाराष्ट्र जल रहा है। आदमी-आदमी के बीच, जाति-धर्म के बीच झगड़े लगाने का काम हुआ। अब लोगों और कब्रों के बीच लड़ाई लगाकर भाजपा तालियां बजा रही है। औरंगजेब सत्ता के लिए धर्म का इस्तेमाल करता था। आज की भाजपा भी वही कर रही है। धर्म का इस्तेमाल करके महाराष्ट्र को जलाने के लिए वे निकल पड़े हैं। १७०७ में औरंगजेब इसी मिट्टी में मरा। २०२५ में भाजपा को एहसास हुआ कि १४ रुपए में बना यह मकबरा देश के लिए खतरनाक है। इस औरंगजेब का जन्म गुजरात में हुआ था। वह महाराष्ट्र पर कब्जा करने आया और यहीं उसकी कब्र बनी। भाजपा समर्थक जब औरंगजेब की कब्र पर दंगे भड़का रहे थे उसी समय महाराष्ट्र के एक शिक्षक ने आत्महत्या कर ली। उसे १८ साल तक वेतन नहीं मिला। किसान कर्ज में डूबकर आत्महत्या कर रहे हैं, इधर मोदी सरकार अमीरों के
लाखों-करोड़ के कर्ज
माफ करने में व्यस्त है। अमीरों को यह दान देना और गरीबों के बच्चों को हिंदू-मुस्लिम के खेल में उध्वस्त करना। चीन १४० मीटर ऊंचा कांच का पुल बना रहा है, चंद्रमा पर ‘रिसर्च सेंटर’ बना रहा है, हाईस्पीड ट्रेन चला रहा है और भारत में क्या हो रहा है? युवाओं को मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढने के काम में लगाया है। उनके हाथों में मस्जिदों की नींव खोदने के लिए कुदाल और फावड़े थमा दिए गए हैं। अब बोनस के तौर पर औरंगजेब की कब्र खोदने का काम भी दे दिया। भविष्य को नरक बनाकर युवाओं को बर्बाद करने का यह खेल खतरनाक है। प्रधानमंत्री मोदी ने युवाओं के हाथों में कुदाल, फावड़े और पत्थर थमा दिए और उनके भक्तों को इस पर गर्व हो रहा होगा। कब्र में पड़ा औरंगजेब भी इस पर मन ही मन हंसता होगा। महाकुंभ के सफल आयोजन पर प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में भाषण दिया, लेकिन देश का भविष्य रोज अंधकारमय होता जा रहा है, इस पर वे कुछ बोलते नहीं हैं। महाराष्ट्र जैसा राज्य यदि दंगों में झुलस गया तो सभी का नुकसान होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना १९२५ में हुई थी। तब से लेकर अब तक ‘संघ’ को औरंगजेब की कब्र पर आवाज उठाने की जरूरत क्यों नहीं महसूस हुई? पेशवाओं ने १७१३ से १८१८ तक शासन किया। औरंगजेब की कब्र वे भी हटा सकते थे, लेकिन पेशवाओं ने भी ऐसा नहीं किया, पर आठ लाख करोड़ के कर्ज तले दबे महाराष्ट्र ने ‘कब्र’ उखाड़ने को प्राथमिकता दी। महाराष्ट्र की इतनी दुर्दशा कभी नहीं हुई थी। दंगे किसने करवाए और ठीकरा ‘छावा’ पर फोड़ दिया गया!