नया एहसास

वही जज्बा है कुछ कर गुजरने का।
तिरछी आंखों में वही उम्मीद भरी चमक।
दिल की खुशी चेहरे पे मुसकरा रही है।
ये राज चेहरे की रौनक खोल रही है।
तुमको कुछ कहने की जरूरत नहीं है
तुम्हारी तस्वीर मुझ से बतिया रही है।
इसके बाद मैं कुछ और लिखूं तो क्या?
‘सुसरी कलम’ ही लिख-लिखवा रही है।
मना करूं भी तो कब जिद छोड़ती है ये।
अपनी मर्जी की मालकिन है ये
जो, जी में आया लिख-पढ़ सुनाती है।
इसे त्याग भी तो नहीं सकता हूं मैं।…
जब तब मुझ में “नया एहसास” जगाती है।
उन्हीं अहसासों का सदका, जी रहा हूं।
हौसले की सुई और उम्मीद के धागे से,
उधड़ी ‘यादें ‘ सी’रहा हूं, चाहे ‘रफू’ कह लो।
मन लगा रहता है, इसमें तुम्हारा क्या जाता है!
तुम्हें तो और भी खुश होना चाहिए
किसी अपने को खुशी देने का सबब बनी हो
इसके अलावा जिंदगी में रखा क्या है।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा

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