महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार एक नमूना है और हर मंत्री नमूने की एक बानगी। फडणवीस और अन्य मंडली ने चुनाव से पहले किसानों को ऋण माफी देने का वादा किया था, लेकिन नई सरकार के विराजमान होते ही किसानों को धोखा दिया गया। वित्त मंत्री अजीत पवार ने मुंह पर कह दिया कि कर्जमाफी संभव नहीं है। राज्य के विद्वान कृषि मंत्री माणिक कोकाटे इससे भी आगे निकल गए और बोले, ‘किसान कर्ज का पैसा फालतू में उड़ा देते हैं। किसान कर्ज लेते हैं और पांच से दस साल तक कर्जमाफी का इंतजार करते हैं। एक बार जब कर्ज माफ हो जाता है, तो वे उस पैसे का इस्तेमाल सगाई, शादी आदि की पार्टी में करते हैं।’ राज्य के कृषि मंत्री ने किसानों की इज्जत की धज्जियां उड़ा दी हैं। किसान हलाकान हो गए हैं। वक्फ बोर्ड बिल पास होने से न तो किसानों का कर्ज खत्म होगा और न ही उनके जीवन में खुशहाली आएगी। किसान पैसा फालतू में उड़ा देते हैं, तो सरकार अलग क्या करती है? पिछले तीन महीने में नए मंत्रियों के बंगलों पर पचास करोड़ सरकारी पैसा बर्बाद किया गया है। कृषि मंत्री धनंजय मुंडे के कार्यकाल में फसल बीमा योजना में सैकड़ों करोड़ रुपए का घोटाला हुआ था। फर्जी लोगों के नाम पर लोन और लाभ दिखाकर लूट की गई। पिछले मंत्रियों ने इस लूट के पैसे से कौन सा तीर मार लिया? चुनाव से पहले लाडली बहनों के वोट खरीदने के लिए जो फिजूलखर्ची हुई, उस पर कौन बात करेगा? लेकिन फडणवीस सरकार की नीति है कि यदि किसान कोई अपेक्षा रखते हैं तो उनकी गिनती पागलों में हो जाती है। फडणवीस सरकार क्रूर और अमानवीय है। बैंकों ने कर्ज वसूली के लिए किसानों के गले में फंदा डालना शुरू कर दिया है। किसानों को धारा १०१ का नोटिस भेजा गया है। महाराष्ट्र सहकारी सोसायटी अधिनियम, १९६० की धारा १०१ के तहत राज्य में २५ लाख किसानों को
ऋण वसूली नोटिस
भेजना अमानवीय है। यह किसानों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने जैसा है। अब फडणवीस और अजीत पवार का दिखावा कैसा, जबकि विधानसभा चुनाव में महागठबंधन सरकार ने किसानों का पूरा कर्ज माफ करने का वादा किया था। इसलिए कर्जमाफी की उम्मीद लगाए बैठे किसान ३१ मार्च को वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक बकाया फसल ऋण चुकाने के लिए बैंकों में नहीं गए। अब मार्च महीने में अजीत पवार ने लोन की किश्तें चुकाने का आदेश जारी किया। किसानों पर एक के बाद एक संकट टूट पड़ रहे हैं। मार्च के अंतिम सप्ताह में राज्य बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्रभावित हुआ था। जिसके चलते किसानों पर पहाड़ टूट पड़ा। ऐसे हालात में किसान कर्ज कैसे चुकाएगा? भाजपा के लोग मतलबी और स्वार्थी हैं। वक्फ बिल के बहाने करोड़ों गरीब मुसलमान उन्हें याद आए, लेकिन किसानों और उनके परिवारों की दयनीय हालत उन्हें नजर नहीं आती। उनकी नीति किसानों को असहाय बनाकर उन्हें अपने पीछे भेड़-बकरियों की तरह दौड़ाने की है। किसान संगठित नहीं हैं और किसान नेता विश्वसनीय नहीं हैं। नेता राजू शेट्टी और अन्य ने चेतावनी दी है कि लोन वसूली के लिए आने वाले बैंक अधिकारियों को पीटा जाएगा, लेकिन पिटाई की शुरुआत खुद शेट्टी द्वारा होनी चाहिए। बैंक अधिकारी नौकरीपेशा वर्ग के हैं। वे क्या करेंगे? जब तक धोखेबाज नेताओं और मंत्रियों को ‘धोया’ नहीं जाएगा तब तक कुछ नहीं होगा। अगर २५ लाख किसान, जिन्हें कर्ज वसूली के नोटिस दिए गए हैं, एकजुटता के साथ सड़कों पर उतर आएं और मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्रियों के घरों पर मार्च करें, तो उन सभी को देश छोड़कर भागना पड़ेगा।
लेकिन क्रांति की चिंगारी
फूंके कौन? जब चुनाव आए तो इन किसानों से यह कहकर वोट डलवाया गया कि हिंदुत्व खतरे में है और चुनाव के बाद हिंदुत्व तो एक तरफ रह जाता है और किसान ही खतरे में आ जाता है। और ‘राम-राम भैया’ कहने वाले नादान किसान को ‘जय श्रीराम’ का मंत्र चटवाकर फिर से बहला-फुसला दिया जाता है। यदि किसान इस चक्र से बाहर नहीं निकला तो उसे कर्ज वसूली के जाल में तड़पना पड़ेगा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को गरीबों को लेकर कोई दर्द नहीं है। वह मुंह में सोने का चम्मच लेकर कुर्सी पर विराजमान हो गए। इसलिए वे कुर्सी पर बैठकर ‘लफ्फाजी’ करने के अलावा कुछ नहीं करते। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान निजी साहूकारों के कारण संकट में हैं। सरकारी बैंकों का कर्ज नहीं चुकता, इसलिए कोई नया कर्ज भी नहीं मिलता। निजी साहूकारों के पास मकान और खेत गिरवी रखकर कर्ज लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता। उस कर्ज के फंदे में फंसकर उसे आत्महत्या का फंदा गले में लटकाकर उससे हमेशा के लिए छुटकारा पाना होता है। अब २५ लाख किसानों के गले में कर्ज का फंदा पड़ा है। यह २५ लाख किसानों और उनके परिवार यानी दो करोड़ लोगों की ‘गंभीर’ समस्या है। मौजूदा हुक्मरानों के पास उस समस्या को हल करने की न तो कूवत है और न ही इच्छाशक्ति। ‘हमारी सरकार को पांच साल तक ब्रह्मदेव भी नहीं गिरा सकते’ इस अहंकार के साथ वे २५ लाख किसानों के गले में कर्ज का फंदा लपेटने का दुस्साहस कर रहे हैं। ब्रह्मदेव कुछ करें या न करें, अन्नदाता को अब इन अहंकारी हुक्मरानों के खिलाफ आवाज उठानी ही होगी। एकता की वङ्कामूठ के प्रहार से उनकी मस्ती उतारनी होगी। इस फंदे को सरकार के गले में डालकर कसना होगा!