मुख्यपृष्ठनए समाचारमुरबाड में पानी संकट...गर्मी की शुरुआत होते ही टैंकर की आस...आदिवासी इलाकों...

मुरबाड में पानी संकट…गर्मी की शुरुआत होते ही टैंकर की आस…आदिवासी इलाकों में पानी के लिए संघर्ष…योजनाएं कागजों तक सीमित…पानी के लिए मचा हाहाकार

सामना सवांददाता / मुरबाड

मुरबाड तालुका में गर्मी की शुरुआत के साथ ही पानी संकट गहराने लगा है। यहां के हजारों मजदूर रोजगार के लिए घाटमाथा की ओर पलायन कर रहे हैं, जबकि जो लोग गांव में रह गए हैं, वे पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। खासकर आदिवासी इलाकों में हालत और भी गंभीर है।
पानी की समस्या को सुलझाने के लिए मुरबाड तालुका में जलजीवन मिशन के तहत बहुत सी योजनाएं लागू की गईं थीं, लेकिन इनमें से अधिकांश योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह गईं। दिसंबर 2023 में 125 ग्राम पंचायतों में शुरू की गई इन योजनाओं में से केवल 40 योजनाओं का ही कार्य पूरा हो पाया है। परिणामस्वरूप सासणे, मिल्हे, दुधनोली, रामपुर कलभांड, म्हाडस, मोहघर, तोंडली, केदुर्ली, सायले, शिलंद, म्हसा, खांडपे, फणसोली, सुकालवाडी, नागाव, शिंदीपाडा, वाल्हिवरे, कुंभाले, फांगुलगव्हाण, आंबेमाल, एकलहरे, दुर्गापुर, बांगरवाडी, गुमालवाडी, विढेपाडा, चिंचवाडी जैसे गांवों में भीषण पानी संकट खड़ा हो गया है।
गर्मी बढ़ते ही टैंकर से पानी आपूर्ति की मांग शुरू हो गई है। पाटगांव, वाघवाडी, तोंडलीपाडा, फांगुलगव्हाण, आंबेमाली, भूवन, साजई जैसे गांवों में टैंकर से पानी पहुंचाने के प्रस्ताव भेजे गए हैं। मुरबाड पंचायत समिति के कार्यकारी अभियंता जगदीश बनकरी ने बताया कि जैसे-जैसे प्रस्ताव आएंगे, संबंधित क्षेत्रों की जांच कर टैंकर भेजे जाएंगे।
पानी के संकट के कारण यहां के आदिवासी और ग्रामीणों का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। महिलाएं और बच्चे भी पानी के लिए लंबी दूरी तय कर रहे हैं। कई गांवों में रात-दिन पानी के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। विशेष बात यह है कि मुरबाड तालुका में वर्ष 2009 से ही विकास पुरुष और कार्यसम्राट का दावा किया जाता है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोग आज भी परेशान हैं। मजबूर होकर लोग धरना प्रदर्शन और आंदोलन के जरिए अपनी बात रखने को विवश हैं। पानी संकट के चलते महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को पानी के लिए भटकना पड़ रहा है। यह हालत तब है जब हर साल की तरह इस बार भी गर्मी की शुरुआत से ही टैंकर के सहारे पानी आपूर्ति का दावा किया गया है, लेकिन जमीन पर हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं।

अन्य समाचार