संवाद : भरतकुमार सोलंकी
हीरालालजी और मोतीलालजी दो सगे भाई हैं। परिवार के संस्कार एक जैसे, व्यवसाय भी एक जैसे-दोनों की किराने की दुकानें, एक ही मोहल्ले में। फर्क सिर्फ इतना कि हीरालालजी की दुकान में तीन बेटे-रमेश, सुरेश और प्रकाश-एक साथ मेहनत करते हैं, जबकि मोतीलालजी का बेटा कमलेश अकेला अपनी दुकान संभालता है।
अब दिल थामकर सुनिए:
कमलेश पिछले 15 सालों से हर महीने एक लाख रुपए की SIP (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) कर रहा है, यानी अब तक 1.80 करोड़ रुपए निवेश कर चुका है। दूसरी ओर हीरालालजी के तीनों बेटे मिलकर सिर्फ 15,000 रुपए की SIP कर रहे हैं। वो भी तीन हिस्सों में बंटकर!
जब मैंने, भरतकुमार सोलंकी, पिछले महीने हीरालालजी से यह मुद्दा उठाया तो उन्होंने बेहद मासूमियत से कहा, “हमारा खर्च बहुत होता है बेटा, तीनों लड़कों की फैमिली है, एक ही दुकान है, क्या करें?”
मैंने मुस्कराकर जवाब दिया, ”हीरालालजी, दुकान कमाकर नहीं देती, दुकान को चलाने वाले कमाते हैं। और आपके पास तो तीन रत्न हैं, फिर आपकी SIP कमलेश से क्यों पिछड़ रही है?”
इसके बाद बातचीत थोड़ी गहराई में गई। हमने स्किल डेवलपमेंट की बात की, फिर लीडरशिप की और आखिर में हीरालालजी ने अपनी भूल स्वीकार की। उसी दिन उन्होंने अपने तीनों बेटों की तरफ से 25-25 हजार की नई SIP शुरू कर दी।
उन्होंने खुद कहा, “हमारे म्यूच्युअल फंड एडवाइजर ने कभी हमें इस नजर से नहीं समझाया। अगर किसी ने हमें 15 साल पहले यह बताया होता, तो आज हमारे तीनों बेटे मिलकर कमलेश से दोगुनी SIP कर रहे होते। हम भी करोड़पति निवेशक बन गए होते।”
सवाल ये उठता हैं….
▪️आपका फाइनेंशियल एडवाइजर क्या सिर्फ फॉर्म भरवाने और फंड के नाम बताने तक सीमित है?
▪️क्या उसने कभी आपके घर की स्किल, आपकी कमाने की क्षमता और फैमिली स्ट्रक्चर को ध्यान में रखते हुए निवेश की रणनीति बनाई?
▪️क्या उसने कभी ये बताया कि ”एक दुकान का मुनाफा तीन हिस्सों में बंटे, उससे बेहतर हैं कि तीनों हिस्से मिलकर तीन गुना मुनाफा पैदा करें?”
असल में…
कोई भी दुकान केवल उसके Location या Rent से नहीं कमाती। अगर दुकान किराया ही देती तो मॉल मालिक सबसे बड़े अमीर होते। असली कमाई होती हैं उस दुकान के पीछे खड़े इंसान की मेहनत, उसकी स्किल और उसकी लीडरशिप से।
अगर कामगार ही दुकान चला सकते, तो फिर मालिक की जरूरत क्यों होती?
लीडरशिप का मतलब सिर्फ बैठकर आदेश देना नहीं, बल्कि दिशा दिखाना होता हैं। जैसे मोतीलालजी ने कमलेश को निवेश की दिशा दिखाई, वैसे ही हीरालालजी ने अब जाकर वो पहल की।
सीख क्या हैं?
1. वित्तीय सलाहकार सिर्फ ब्रोकर नहीं, गाइड होना चाहिए।
2. कमाई कम होने का बहाना मत बनाओ, स्किल और माइंडसेट बदलो।
3. अगर तीन लोग एक साथ दुकान चला रहे हैं, तो तीन गुना मुनाफा दिखना चाहिए।
4.SIP सिर्फ पैसे का निवेश नहीं, सोच का निवेश हैं।
तो अगली बार जब आप अपनी कमाई का रोना रोएं, एक मिनट रुकिए और सोचिए—”मैं दुकान चला रहा हूं या दुकान मुझे?”
और फिर याद कीजिए—कमाने का हुनर स्किल से आता हैं और भविष्य की सुरक्षा सही निवेश से।
दुकान नहीं कमाती… दिमाग कमाता हैं।
याद रखिए, स्किल + SIP = Smart Future!