सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा ने २०२४-२५ में ३६,९०० करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय कर नया रिकॉर्ड बनाया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में ८७ फीसदी अधिक है। हालांकि, यह आंकड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की दिशा में बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन जब शहर बुनियादी सुविधाओं-जैसे पानी, कचरा प्रबंधन और स्वास्थ्य सेवाओं-की गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, तब इस खर्च की प्राथमिकताओं पर सवाल उठना लाजमी है।
सबसे बड़ा हिस्सा रोड कंक्रीटाइजेशन, टनल निर्माण और कोस्टल रोड जैसे महंगे प्रोजेक्ट्स पर खर्च किया गया है, जबकि शहर की झुग्गी बस्तियों, जलापूर्ति की कमी और मानसून से पहले की सफाई व्यवस्था को फिर से नजरअंदाज कर दिया गया। आम नागरिक आज भी गर्मी में जलसंकट झेल रहा है और अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मनपा जनता की असली जरूरतों को नजरअंदाज कर सिर्फ दिखावटी विकास पर ध्यान दे रही है?
इसके अलावा ९१,६९० करोड़ रुपए की एफडी में अब सिर्फ ७९,५०० करोड़ रुपए शेष रह गए हैं यानी मनपा अपने सुरक्षित फंड्स को भी तेजी से खत्म कर रही है। साथ ही १६,८५३ करोड़ रुपए का आंतरिक अस्थायी ट्रांसफर भी यह दर्शाता है कि इस खर्च की योजना कितनी टिकाऊ है, इस पर भी संदेह है। जब जनता बुनियादी सेवाओं के लिए तरस रही है और कई योजनाएं सालों से अधूरी हैं, तब मनपा का यह खर्च कहीं न कहीं प्रशासनिक प्राथमिकताओं और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।