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मायावती के खजाने पर सपा की नजर!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के कमजोर पड़ते ही जनाधार को लूटने के लिए राजनैतिक दलों में होड़ सी लग गयी है। चाहते तो सब हैं कि बसपा का वोट बैंक खंगालना, लेकिन उसके पूर्व मंत्रियों को तोड़कर समाजवादी पार्टी बहुत हद तक कामयाब हुई है। 2007 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के बाद राज्य भर में हरिजन बनाम सवर्ण के बढ़े मुकदमों से त्रस्त पीड़ितों के समर्थन में खड़े होकर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बना लिया। उसके बाद से मायावती लगातार जनाधार खोती जा रही हैं।
बसपा को मात्र 80 सीटें मिलीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा विधायकों की संख्या घट कर मात्र 19 रह गयी। 2022 में बसपा को मात्र एक सीट मिली। उसी तरह लोकसभा चुनाव 2014 में बसपा का यूपी में खाता नहीं खुला। 2019 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बाद बसपा को 10 सीटें मिलीं। 2024 में फिर से बसपा प्रत्याशियों का लोकसभा में खाता नहीं खुला। इस चुनाव में बसपा के कोर वोट भी खिसक गए। बसपा सुप्रीमो मायावती अपने घरेलू झगड़ों में ऐसी उलझीं कि जिस समधी को कभी राज्यसभा भेज कर कई राज्यों का प्रभारी बनाया था, जिसकी बेटी से भतीजे आकाश आनंद की शादी करवा के समधी को मजबूती दिया, अब उन्हीं को पार्टी से बाहर कर दिया। जिस भतीजे में अपना उत्तराधिकारी देखती थीं, उसे स्वयं ही नेपथ्य में झोंक दिया। इधर मायावती अपने में उलझी हैं, उधर अखिलेश यादव बाबा साहब के वैचारिक उपासकों को जोड़ने के लिए शीर्षासन करके जुट गए हैं।
मायावती की घटती सामाजिक सक्रियता का लाभ उठा कर 2019 के लोकसभा में ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बहुत हद तक झुक कर गठबंधन किया था। पत्नी डिंपल यादव से मंच पर मायावती का पैर छूकर प्रणाम करवाया। 2029 में बसपा को लोकसभा की 10 सीटें मिली थीं। समाजवादी पार्टी को मात्र 5 सीटें मिली थी, लेकिन उसी चुनाव में अखिलेश को बसपा के अन्य दिग्गज नेताओं को साधने का लाइसेंस मिल गया। अखिलेश यादव ने एक-एक कर बसपा के दिग्गज नेताओं को तोड़ कर लोकसभा 2024 में रिकॉर्ड 37 सीट पर जीत प्राप्त किया।
बसपा के गद्दारों को मिला कर पीडीए की जीत पर खेल रहे सपा प्रमुख 2027 में यूपी में पुनः सत्ता वापसी की तैयारी कर रहे हैं। कभी बसपा के दिग्गज रहे पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, राम प्रसाद चौधरी कुछ दिनों के लिये स्वामी प्रसाद मौर्य, फिर पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद अब समाजवादी पार्टी के नेता हैं। अखिलेश को लगता है कि बसपा से गैर जाटव नेताओं को तोड़ लेंगे तो जाटव भी बिखर जाएंगे। 2024 के लोकसभा चुनाव में हुआ भी यही। कांग्रेस के रास्ते दलित और मुस्लिम इंडिया गठबंधन से जुड़े, जिसके कारण यूपी में भाजपा की गणित बिगड़ गयी और वह पूर्ण बहुमत से वंचित हो गयी। जिस तरह से राणा सांगा पर रामजी लाल सुमन द्वारा राज्यसभा में टिप्पणी करवा कर समाजवादी पार्टी पहले बैकफुट पर आयी और बाद में करणीसेना के विरोध को राजपूत बनाम दलित करने में जुट गयी, वह उसकी मंशा को साफ कर दिया है। अखिलेश यादव यह जान चुके हैं कि 2027 के विधानसभा चुनाव के पहले यदि 50% जाटव वोट भी यदि तोड़ लिए तो बिना किसी के सहयोग के वह यूपी में सरकार बना सकते हैं।

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