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संपादकीय : पेट्रोल-डीजल, अब तो राहत दो!

प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके भगत मंडल तक, हर कोई दावा कर रहा है कि देश का कायापलट सिर्फ उनके शासनकाल में ही हुआ है। हालांकि, रोजमर्रा की घटनाओं से यह साफ होता रहता है कि हालात दरअसल इसके उलट हैं। बढ़ती कीमतें और महंगाई के नाम पर स्यापा कर यह मंडली २०१४ में केंद्र की सत्ता में आई थी। तब से लगातार ११ साल तक सत्ता में रहने के बावजूद न तो महंगाई कम हुई और न ही बढ़ती कीमतें काबू में आईं। सच तो यह है कि मोदी सरकार के पास महंगाई रोकने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। अगर ऐसा होता तो जब भी संभव होता पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम होती दिखाई देतीं, लेकिन यह सरकार पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों को लेकर ‘मुंह में दही जमाए बैठे रहने’ की आसान नीति अपना रही है। इस मंडली का यह तर्क होता है कि पेट्रोल और डीजल की दरें विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतों पर निर्भर करती हैं। स्वाभाविक रूप से जब वैश्विक बाजार में ये कीमतें गिरती हैं तो लोगों की एक साधारण उम्मीद होती है कि पेट्रोल और डीजल की घरेलू कीमतें कम हो जाएंगी, लेकिन अब तक यह पूरी नहीं हो पाई है। ऐसे मौके पर भारतीय
पेट्रोलियम कंपनियों का समर्थन
करनेवाली मोदी सरकार इन कंपनियों पर घरेलू ईंधन सस्ता करने के लिए दबाव नहीं डालती। अब भी कच्चे तेल की कीमतें २०२१ के बाद पहली बार ७० डॉलर से नीचे गिर गई हैं। इसका मतलब है कि भारत के लिए कच्चे तेल के आयात की औसत कीमत ७० डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गई है। शुक्रवार को कच्चे तेल की कीमतें ६९.३९ डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर पर थीं। पिछले साल अप्रैल में यही दर ८९.४४ डॉलर के बराबर थी। यानी सालभर के दौरान विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमत में २२ फीसदी की गिरावट आई है। सोमवार को इसमें और गिरावट आई, बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें अभी भी कम होने की बजाय बढ़ रही हैं। पिछले एक हफ्ते में रसोई गैस के दाम ५० रुपए बढ़ गए हैं। इससे आम आदमी का बजट बिगड़ गया है, लेकिन हुक्मरानों को इसकी कोई परवाह नहीं है, क्योंकि ये सरकार ‘व्यापारी मंडल’ की है और इस सरकार की नस-नस में मुनाफाखोरी घुसी हुई है इसीलिए आम लोगों को लगने वाली
महंगाई की आंच
को कम नहीं होने दिया जाता। दुनिया में चाहे कच्चा तेल महंगा हो या सस्ता, भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें ऊंची रहेंगी, यही नीति मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से लागू की है, नहीं तो पिछले सालभर में विश्व बाजार में जिस तरह कच्चा तेल २२ फीसदी सस्ता हुआ, उसी तरह भारत में भी पेट्रोल-डीजल के दाम २२ फीसदी कम होने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। इसके उलट, पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क लगाकर और पिछले सप्ताह रसोई गैस की कीमत में ५० रुपए की वृद्धि करके, इस सरकार ने फिर से कफन चोरी का अपना रवैया दिखाया है। सोमवार को कच्चा तेल और भी सस्ता हो गया है तो अब पेट्रोल-डीजल सस्ता कर आम लोगों को राहत दें! बेशक, केंद्र की मुनाफाखोर सरकार यह समझदारी नहीं दिखाएगी, क्योंकि उन्हें जनता को आर्थिक विषमता से ‘पंगु’ करना है, सामाजिक-धार्मिक विषमता के नशे में ‘टल्ली’ रखना है और उस पर अपने राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकनी है। जनता और देश को लूटनेवालों को पनाह देना, यही मोदी सरकार की नीति है।

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