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आदतों से बाज नहीं आ रहा चालबाज चीन … ‘ऑपरेशन ब्रह्मा’ फेल करने में जुटा ड्रैगन! …म्यांमार में एयरफोर्स के विमानों पर साइबर हमला

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
म्यांमार में भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए भारतीय वायुसेना ‘ऑपरेशन ब्रह्मा’ चला रही है, लेकिन कोई तो है जो भारतीय वायुसेना के इस मिशन को फेल करना चाहता है। जाहिर तौर पर चीन के अलावा कौन ऐसा करना चाहेगा। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय वायुसेना सुरक्षा के तमाम प्रोटोकॉल्स को फॉलो कर रही है, फिर भी ऑपरेशन ब्रह्मा के दौरान म्यांमार में अलग-अलग दिनों में उड़ान भरने वाले एयरक्राफ्ट को लगातार जीपीएस स्पूफिंग का सामना करना पड़ा है। यह ऑपरेशन भारत ने भूकंप प्रभावित देश को राहत पहुंचाने के लिए शुरू किया था। जीपीएस स्पूफिंग एक तरह से साइबर हमला होता है, जिसके बारे में शक है कि इसे चीन अंजाम दे रहा है, ताकि भारतीय मदद में बाधा उत्पन्न हो।
जीपीएस स्पूफिंग काफी खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि इसके जरिए किसी विमान के नेविगेशन को कंट्रोल कर लिया जाता है और फ्लाइटों को लैंड करते वक्त सही सिग्नल नहीं मिल पाता है। इसके अलावा जब विमान हवा में रहते हैं, तो उन्हें रनवे के बारे में सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है और कई बार वो एयरपोर्ट्स भी नहीं खोज पाते हैं। गाजा युद्ध के दौरान इजरायल भी ऐसा कर रहा है, जिसका असर भारत की सीमाओं तक देखा गया है। ऐसी स्थिति में पायलट्स पुराने जमाने में इस्तेमाल किए जाने वाली टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं और विमानों की सफल लैंडिंग करवाते हैं।
कई क्षेत्रों में जीपीएस स्पूफिंग
भारतीय डिफेंस प्रतिष्ठान के सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि २९ मार्च को भूकंप आने के बाद भारत ने म्यांमार में सहायता सामग्री की पहली खेप भेजी तो म्यांमार के हवाई क्षेत्र में कई विमानों में जीपीएस हस्तक्षेप और स्पूफिंग की समस्या आने लगी। हालांकि, फिलहाल ये साफ नहीं हो पाया है कि साइबर हमले ने म्यांमार भेजे गए सभी छह भारतीय वायुसेना के विमानों को प्रभावित किया या नहीं, लेकिन सूत्रों ने कहा कि इनमें से ज्यादातर ने जीपीएस स्पूफिंग की रिपोर्ट दी है। सूत्रों ने कहा कि इसी तरह की घटनाएं चार या पांच अलग-अलग उड़ानों में हुई थीं। सूत्रों के मुताबिक, पहले विमान में जीपीएस स्पूफिंग की समस्या आने के बाद अन्य विमानों के पायलटों को इसके बारे में जानकारी दी गई।
जीपीएस स्पूफिंग और जीपीएस जैमिंग में क्या अंतर है?
नेविगेशन डिवाइस को अगर जानबूझकर गलत जीपीएस सिग्नल भेजा जाए, ताकि उसका लोकेशन बदल जाए, को ये स्पूफिंग कहलाता है। यानी एयरपोर्ट के ऊपर होकर भी पायलट नहीं जान पाएगा कि विमान के ठीक नीचे एयरपोर्ट है। जहां साधारण जैमिंग, वास्तविक सैटेलाइट सिग्नल को छिपाकर नेविगेशन को नाकाम कर देता है, वहीं स्पूफिंग और भी ज्यादा मुश्किल स्थिति उत्पन्न करता है। जिसमें नेविगेशन डिवाइस की तरफ से फॉलो किए जाने वाले डेटा को नकल करके जानबूझकर गलत सिग्नल ट्रांसमिशन किया जाता है। जहां जैमिंग, सिग्नल को शून्य करके समस्या उत्पन्न करता है, वहीं स्पूफिंग पायलटों को यह विश्वास दिलाकर ज्यादा खतरा पैदा करता है कि वे बिल्कुल अलग स्थान पर हैं। इसे इस तरह से समझिए कि पायलट को बताया जाता है कि नीचे एयरपोर्ट है और रनवे हैं, जबकि हो सकता है कि वहां जंगल हो, इंसानी बस्ती हो या फिर समंदर हो।

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