प्रभात का तारा

जैसे ही रवी की पहली किरणें व्योम पर छाई
तारों की टोली ने छुपने की होड़ लगाई
एक तारा नहीं डरा था
अपनी कांति लिए अंबर पर जड़ा था।
प्राची दिशा में बरकरार थी उसकी दीप्ति
उस ओर कर इंगित मेरे मुख से निकला
यही तो है प्रभात का तारा।
मेरी स्मृति पटल पर कौंध गया
इसे ही प्रतीची में मां ने कहा था संध्या का तारा।
एक साहसी तारा जो बना दिनकर का साथी
टिमटिमाते तारों, चंदा का छोड़ दिया साथ।
अदम्य साहस से अपना समय, मार्ग स्वयं निश्चित किया
कोई स्पर्धा रवी से की नहीं
दिनभर अपनी यात्रा ओझल हो कर ही करी
गगन पटल पर रहते दिन चढ़ने तक
सांझ सबसे पहले तुम ही शोभा पाते।
तुम्हें देख एक नव विवाहिता मांग रही मनौती
आज निशा अकेले न बीते उसकी।
अर्ध रात्रि तुमने अपनी यात्रा पूरी कर ली
कल आने वाले प्रभात के लिए अपनी प्रभा संजो ली।
-बेला विरदी

अन्य समाचार