खरीदो

खरीदी दौर है दुनिया खरीदो
आसमां खरीदो
खरीद लो खरीद दाम पर
मकां खरीदो दुकां खरीदो
मुक्कमल दाम लेना बेच देना
मेरी जां तुम मुझे तन्हा खरीदो
मैं बिक जाना चाहता हूं
के खरीदने की हैसियत नहीं है
तुम्हारे पास क्या कुछ नहीं है
चलो यार…खामखा खरीदो
मैं किश्तों में भी बिक जाऊंगा
किश्मतन इक दिन
जल्दबाजी क्या है? आहिस्ता खरीदो
वो कुछ एक फूल मेरी नाकामियों के
खिल गए हैं
इन्हे समेटकर सबको दिखाओ
गुलदस्ता खरीदो
धरती पर टिक गए हैं पांव मेरे
तुम उड़ रहे हो…समूचा आसमां खरीदो
खरीद ली है तुमने जुबान सबकी
ये पुराना हुआ… कुछ नया खरीदो।
– सिद्धार्थ गोरखपुरी

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