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सपनों से संघर्ष तक-अमरजीत का समरस समाज की ओर सफर

सामना संवाददाता / मुंबई

मुंबई की झुग्गियों में पले-बढ़े अमरजीत उमेशकुमार सिंह का बचपन चुनौतियों से भरा था।उनके पिता केवल सातवीं तक पढ़ पाए और एक वॉचमैन के रूप में परिवार का पालन-पोषण किया। उनकी मां कभी स्कूल नहीं जा सकीं, लेकिन दोनों ने अपने बेटों को अच्छी शिक्षा दिलाने का संकल्प लिया और बिहार से अच्छी शिक्षा की तलास में मुंबई आ गए। अमरजीत ने शेठ आनंदीलाल पोदर स्कूल से शिक्षा प्राप्त की, फिर एल.एस.रहेजा कॉलेज, मुंबई युनिवर्सिटी से BCom और MCom पूरा किया। इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन पॉलिटिक्स लीडरशिप एंड गवर्नेंस पूरा किया और अब चाटर्डर् अकाउंटेंट की पढ़ाई के अंतिम चरण में हैं।
“ शिक्षा ही मेरा अस्त्र है” ये बात अमरजीत तब कहते हैं, जब वो बताते हैं कि पिछले सात सालों से उन्होंने अपनी कोचिंग संस्था के जरिए करीब 1,400 झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को कम दरों पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी हैं। कई बच्चे जो पढ़ाई छोड़ चुके थे, उन्हें वापस शिक्षा से जोड़ा। सामाजिक समरसता, शिक्षा जैसे विषयों पर उनके निरंतर प्रयासों ने उन्हें एक जमीनी नेता बना दिया है। हाल ही में राज्यसभा में इंटर्नशिप पूरी कर, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से जब अमरजीत ने प्रमाण पत्र लिया तो उनके शब्द थे–“मैं यहां अकेले नहीं खड़ा, बल्कि मेरे जैसे लाखों गरीब और वंचित वर्ग के बच्चों की आवाज बनकर खड़ा हूं। यह सम्मान मेरा नहीं, उन लाखों बच्चों और परिवारों का है, जो आज भी झुग्गियों में हैं, लेकिन सपना बड़ा देख रहे हैं।”
“मेरे जैसे लोग जो अंतिम पंक्ति से आते हैं, जब संसद जैसे लोकतांत्रिक मंदिर में पहुंचते हैं, तो यह इस बात का प्रमाण है कि संविधान सबको अवसर देता है। डॉ. बाबासाहबे आंबेडकर जी ने जो संविधान हमें दिया वो सिर्फ़ एक किताब नहीं, वो हमारे जैसे लाखों युवाओं के सपनों की चाबी है। उन्होंने कहा था कि “शिक्षा शस्त्र है, जिससे आप समाज को बदल सकते हैं।” वहीं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का “अंत्योदय” का विचार—यानी समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति तक सेवा पहुंचाना—वो आज साकार होता दिखता है। “मेरा यह सफर उन्हीं सपनों को आगे बढ़ाने के लिए है, जो डॉ. आंबेडकर और प. दीनदयालजी ने देखे थे।” अमरजीत आगे चलकर अपने समुदाय, विशेकर वंचित और पिछड़े तबकों के लिए काम करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य है कि राजनीति में उन युवाओं की भागीदारी बढ़े, जिनका इससे पहले कोई जुड़ाव नहीं रहा। वे मानते हैं कि लोकतत्रं की असली सक्ति तब प्रकट होगी, जब “अंतिम व्यक्ति” निर्णायक भूमिका में आएगा। वो कहते हैं, “हमारे पास विरासत नहीं हैं, पर मेहनत और शिक्षा की ताकत है। राजनीति में अब पढ़े-लिखे जमीन से जुड़े युवाओं को आना चाहिए।”
अमरजीत जी ने बताया कि दिल्ली में राज्यसभा इंटर्नशिप पूरी करने के बाद अब वो फिर अपने लोगों के बीच लौटेंगे, वहीं जहां से उनका सफर शुरू हुआ था। वे अब पहले की तरह ही समाज के बीच रहकर सेवा कार्य करेंगे और जैसे-जैसे उन्हें जिम्मेदारियां मिलेंगी वे उसे पूरे समपर्ण और निष्ठा से उनका निर्वहन करेंगे। अपने माता-पिता अपने प्रेरणा स्रोत गुरु नरेश पाटिल और संघर्ष के हर मोड़ पर साथ देने वाले अनिगनत साथियों को समर्पित किया। उनका मानना है कि “यह सम्मान मेरा नहीं, उन सभी का है जिन्होंने मुझे विश्वास दिया, हौसला दिया और मेरी यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर चले और आगे भी चलते रहेंगे।

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