हे री सखी

हे री सखी, मेरी प्यारी सखी
मेरी उलझन को सुलझाओ री।
रूठे सजनवा कैसे, कैसे मनाऊं
मुझे कुछ तो तुम बतलाओ री।
ए री सखी मेरी प्यारी सखी
मेरी उलझन को सुलझाओ री।
नहीं जानती कब रूठे, क्यों रूठे
मैं अब तक जान न पाई थी।
सब सखियन तुम पिया कैसे बांधें
क्यों मेरे पिया ने सुध ली न मेरी
कुछ तो जुगत लगाओ री।
चांदनी रातें अब बीत गई
फिर अंधियारी रातें आई री
आषाढ़, सावन बीत गए
बरखा बरस-बरस पगलाई री।
कोयल कूक-कूक हियरा जलावे
पिया को मेरी सुधि ना आई री।
ए री सखी मेरी प्यारी सखी
मेरी पीड़ा तो सुनती जाओ री।
हूक उठे मेरे हीयरा में
मेरे पिया तक आवाज पहुंचाओ री।
कहां माथा टेकू, कहां दीप जलाऊं
कोई तो मंत्र बताओ री।
पिया हें कैसे देश पराये में
यही सोच मुझे सतावे री
ए री सखी, प्यारी सखी
मेरे मन की पीर बुझाओ री।
-बेला विरदी

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