आज पुरानी यादों की गलियों में गई थी
वहां कुछ तिजोरी खुली पडी थी
कुछ सामान बिखरा पड़ा था
कुछ वादे गिरे पड़े थे
कुछ प्यार सिमटा पड़ा था
कुछ एहसास टूटे पड़े थे
कुछ शिकवे उल्टे पड़े थे
कुछ अरमान फैला पड़ा था
जैसे कोई आया हो
इन्हें चुरा ले गया हो
कुछ बचा हुआ सामान..
मैं भी अपने साथ लाई हूं।
-वंदना मौर्या, इंदौर