आने वाला क्षण

गमों का गिरोह जकड़ गया, हटता नहीं पीछे अकड़ गया।
समय का आना पिछड़ गया, समय का जाना आगमन।
दिन गिनते-गिनते दिन गुजर गए, अभी तक तो लापता है वो पल।
आने वाला था जो कल, झूठ है या है सच, किसको है पता
अंबर को सब पता, धरती को कुछ न पता
अंबर के सर पे तो ताज है, धरती तो उसकी मोहताज है
घड़ियां बीत रही हैं पल-पल, आने वाले की आहट तो आ जाए
खुशियों का सागर छलक उठेगा, महफिलों का समा जवां होगा।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

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