परछाइयां

ख्वाहिशों की राह में
कोई हमराह नहीं मिलता,
हर किसी में दर्द बांटने का
साहस नहीं मिलता।
इश्क की इस सियासत में
हर कोई पहनता है नए नकाब,
पर लफ्जों की परछाइयों में
अक्सर दिख जाता है असल किरदार।
जिंदगी के हर मोड़ से
गुजरे हैं हम बहुत संभल के,
दर्द भी उठाया है तनहा
बेहिसाब बिना किसी सहारे के।
अब तो हर सांस में
बस थोड़ा सुकून चाहिए,
हर लम्हा हो हसीन
ताकि जख्मों से कुछ चैन मिल जाए।
अजनबी बनकर
अब और दूरी नहीं सही जाती,
तुम बिन हर पल अधूरा है
जैसे कोई कहानी हो अधूरी।
जिंदगी को गर जिया जाए
उम्मीद की रौशनी के साथ,
तो हर अंधेरा भी लगता है
जैसे कोई अपना है साथ।
बुझी हुई चाहतों के चिराग से
सुबह की रोशनी नहीं आती,
जो ख्वाब बुझ गए हों दिल में,
वो फिर कभी उड़ान नहीं पाते।
तेरी खताओं का हिसाब रखें
या फिर मोहब्बत का करें इजहार,
दिल की इस उलझन में
खुद से ही सवाल हर रोज भरूं।
-मुनीष भाटिया
मोहाली

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