कविता श्रीवास्तव
उप राष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति जगदीश धनखड़ ने राज्यपालों के कार्यों से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लेकर कड़ी टिप्पणी कर दी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर नाराजगी जताते हुए उसे `सुप्रीम संसद’ कह दिया। यही बात चर्चा में आ गई है और विपक्ष ने भी इस पर बयान देने शुरू कर दिए हैं। उल्लेखनीय है कि राज्यों में राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर काम करते हैं। देश में कई राज्यों में देखा गया है कि कई आरक्षित विधेयकों को राज्यपाल लंबे समय तक लटकाए रखते हैं। इसी से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया है कि आरक्षित विधेयकों को राज्यपाल एक महीने के भीतर निपटाएं। इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या भारत में न्यायालय, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय, के पास संवैधानिक मामलों में राष्ट्रपति के कार्यों की समीक्षा करने और उन पर टिप्पणी करने के अधिकार है? संविधान की धारा १४५ (३) के तहत ऐसे प्रावधान हैं। हमारे संविधान में ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका एकदूसरे के कामों पर निगरानी रखते हैं। जहां जरूरत होती है, वे व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए आवश्यक सुधार के लिए टिप्पणी भी करते हैं। इन बातों के मूल में जनता के संवैधानिक अधिकारों को बचाए रखना उद्देश्य होता है। संविधान के मूलभूत स्तंभों को एकदूसरे के काम पर निगरानी रखने के अधिकार प्राप्त हैं। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में संविधान ही सर्वोपरि है। संविधान ने सभी के लिए कार्य सीमाएं तय कर रखी हैं। इसमें सभी संस्थाएं और संवैधानिक पद शामिल हैं। देश की सभी संस्थाएं संविधान के दायरे में कार्य करती हैं। हालांकि, राष्ट्रपति का पद देश में सर्वोच्च अधिकार प्राप्त पद है और राज्यपाल उनके ही प्रतिनिधि होते हैं इसलिए ऐसे महत्वपूर्ण मामले में संवैधानिक अधिकार भी कुछ सीमाओं के साथ आता है। राष्ट्रपति के कुछ काम (जैसे अनुच्छेद ३५६ के तहत आपातकाल लागू करना) संवैधानिक प्रावधानों के तहत केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर किए जाते हैं। इनकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है, लेकिन बहुत सीमित दायरे में। सर्वोच्च न्यायालय के पास राष्ट्रपति के अधिकारों पर टिप्पणी करने का अधिकार है, विशेष रूप से जब उनके काम संविधान का उल्लंघन करते हों या मनमाने ढंग से किए गए हों। हालांकि, यह समीक्षा संवैधानिक ढांचे और न्यायिक मर्यादाओं के भीतर ही होती है। सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद १३, ३२ और १३६ के तहत यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी कार्यकारी या विधायी कार्रवाई की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर सकता है। यदि राष्ट्रपति का कोई काम संविधान के विपरीत पाया जाता है तो न्यायालय उस पर टिप्पणी कर सकता है या उसे रद्द कर सकता है। राज्यपालों द्वारा कई राज्यों में आरक्षित विधेयक लटकाए रखने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को जनहित की दृष्टि से सकारात्मक रूप में देखना चाहिए। ऐसे मामले में विवाद की बजाय समाधान का रास्ता अपनाया जाना चाहिए।