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एक अदद प्रदेश अध्यक्ष की खोज में भटक रही भाजपा!

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ

दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक और स्वानुशाषित पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा को प्रदेश अध्यक्ष चुनने में पसीने छूट रहे हैं। दलितों-पिछड़ों के मुद्दों से खुद को जोड़ कर सत्ता के सिंहासन पर पहुंचा वर्तमान नेतृत्व संगठन के समायोजन में उक्त समाज को हाशिए पर ढकेल दिया है। ब्रह्मनोन्मुखी वैचारिक गर्भगृह वाली पार्टी पिछड़ों का कुछ हद तक समायोजन किया। भारतीय जनसंघ से लेकर भाजपा के आज तक का सफर करने वाला नेतृत्व नारा तो एक से बढ़ कर एक गढ़ देता है, लेकिन किसी दलित को प्रदेश अध्यक्ष बना कर सामाजिक खानापूर्ति भी नहीं कर सका। मजे की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में 2017 सत्ता में आने के बाद पिछड़ों संतुष्ट करने के लिए फायरब्रांड नेता केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बना दिये। लेकिन “सबका साथ-सबका विकास-सबका विस्वास” का नारा बजाने वाली पार्टी किसी दलित को उपमुख्यमंत्री नहीं बना पायी। जातीय समीकरण के दृष्टि से ब्राह्मणों के दबदबे से पार्टी उबर नहीं पायी है। संगठन में हर स्तर पर ब्राह्मण और सत्ता में हर स्तर पर ठाकुर झंडा गाड़े हैं।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के पीडीए के नाम पर इस तरह घेर लिया है कि यदि भाजपा भूल कर भी ब्राह्मण या ठाकुर प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी तो 2028 के पूर्व ही पिछड़े-दलित विधायकों की भगदड़ रोके नहीं रुकेगी।
लगातार कमजोर पड़ रहे बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक को तोड़ने के लिए सभी दल दिन-रात एक किए हुए हैं। अखिलेश की जातीय ब्यूह रचना दिन ब दिन इतनी मजबूत होती जा रही है कि बिना उसको संतुलित किए 2027 में उसको भेद पाना भाजपा के 56 इंच का सीने वाले नेता के बस की बात नहीं रह जाएगी। यूपी भाजपा में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जो सपा मुखिया अखिलेश यादव पर सीधी टिप्पणी करने से भागता है। दुर्भाग्य देखिए कि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को छोड़ कर जो भाजपा नेता सरकार में बड़े-बड़े विभागों की मलाई खा रहे हैं, संगठन में कुंडली मार कर बैठे हैं वह भी अखिलेश यादव के विरुद्ध हमलावर होने की हिम्मत नहीं जुटा पाते या डरते हैं। इस प्रजाति के नेता अपने कार्यकर्ताओं को सत्ता से दूर रखने, संगठन में मशीन की तरह जुट कर काम करने वाले लेबर से बदतर बना कर रख दिए हैं। भारी संख्या में निराशा में डूबे कार्यकर्ताओं की मानें तो 2027 में भाजपा प्रदेश की सत्ता से गयी तो न कोई नारा काम आएगा न कोई कार्यक्रम काम आएगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक डॉ. मोहन राव भागवत भाजपा समेत अपने आनुषंगिक संगठनों से लगातार सर्व समाज में पैठ बनाने की अपील कर रहे हैं। लेकिन भाजपा भागवत की भी नसीहत नहीं ले रही है। जिस करणी सेना ने लोकसभा चुनाव में भाजपा का जम कर विरोध किया वह राणा सांगा के मुद्दे पर रामजी लाल सुमन का इतना रौद्र विरोध किया कि जैसे सरकार का आनुषंगिक संगठन हो। दंगाइयों को होडिंग लगवा कर वसूली करने वाली बुल्डोजर पुलिस करणी सेना के सामने ऐसे दुबक गयी, जैसे रोमियो स्कॉर्ट के सामने मनचले। योगी आदित्यनाथ की सरकार में ठांय-ठांय पुलिस की इतनी बेज्जती कभी नहीं हुई, जितनी करणी सेना के सामने हुई है। भाजपा के स्वर्ण नेताओं द्वारा विभिन्न माध्यमों से अखिलेश यादव पर हमलावर होना भाजपा को हर दिन कमजोर करती जा रही है। बिना सामाजिक समीकरण ठीक से साढ़े भाजपा नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया तो 2027 अखिलेश यादव भाजपा से सत्ता छीन लें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।

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