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फर्जी दस्तावेज बनाकर फ्लैट हड़पने की कोशिश! … आरोपी अमरचंद को नहीं मिली कोर्ट से राहत

– अग्रिम जमानत की याचिका खारिज
प्रेम यादव / भायंदर
मीरा रोड में तीन आरोपियों ने पहले एक निर्माणाधीन बिल्डिंग में फ्लैट पर कब्जा करने की कोशिश की और फिर असफल रहने पर बिल्डर को सोशल मीडिया पर बदनाम करने का अभियान छेड़ दिया।
इस मामले में मे. स्टॉबेरी कंस्ट्रक्शन कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर दिलीप मोहनलाल शाह ने मीरा रोड पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाई थी। शिकायत के अनुसार, आरोपी राजेंद्र रामपाल कुमावत ने २०१७ में कंपनी की इमारत क्रमांक ८ में फ्लैट नंबर १३०२ बुक कराया था, जिसकी कीमत ६०.५४ लाख रुपए थी, लेकिन उसने तय समय पर बाकी राशि का भुगतान नहीं किया।
इसके बाद आरोपी अमरचंद शर्मा ने इस्टेट एजेंट की हैसियत से कथित रूप से फर्जी दस्तावेज तैयार किए और ठाणे के उप निबंधक कार्यालय में फ्लैट को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करा लिया। उसने यह झूठा दावा किया कि पूरे पैसे बिल्डर को चुका दिए गए हैं। इतना ही नहीं, शर्मा ने प्रोजेक्ट मैनेजर से फ्लैट किसी ग्राहक को दिखाने के बहाने चाबी हासिल कर ली और अपने साथी यश की मदद से फ्लैट पर कब्जा भी जमा लिया।
आरोपियों ने बिल्डर की अनुमति के बिना फ्लैट में रखे लगभग ६ लाख रुपए के प्लंबिंग और अन्य कीमती सामानों की चोरी भी की। जब बिल्डर ने इस अवैध कब्जे और फर्जीवाड़े का विरोध किया तो आरोपियों ने सोशल मीडिया पर कंपनी की छवि खराब करने की कोशिश की, जिससे बिल्डर को भारी मानसिक और व्यावसायिक नुकसान हुआ। इस मामले में मीरा रोड पुलिस ने मामला दर्ज किया। इसके बावजूद आरोपियों को गिरफ्तार करने में देरी की गई, जिससे उन्हें अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट जाने का अवसर मिल गया। जब आरोपियों ने ठाणे सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की तो अदालत ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.एस. भागवत ने कहा कि यह मामला पूरी तरह आपराधिक प्रकृति का है और इसमें गहन जांच की आवश्यकता है। जज ने टिप्पणी की कि आरोपियों से हिरासत में पूछताछ जरूरी है, खासकर ६ लाख रुपए मूल्य के चोरी हुए सामान की बरामदगी के लिए। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर शिकायतकर्ता को बदनाम करना, सरकारी अधिकारियों को गुमराह करना और फर्जी दस्तावेजों के जरिए संपत्ति हड़पना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। अब पुलिस को तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उनसे पूछताछ करने का आदेश दिया गया है।

न्यायालय ने किया स्पष्ट
सिर्फ बिजली कनेक्शन या रजिस्ट्री को लेकर सिविल केस दर्ज करना इस मामले को सिविल विवाद की श्रेणी में नहीं ला सकता। आरोपियों की मिलीभगत और सुनियोजित साजिश से साफ जाहिर होता है कि यह गंभीर आपराधिक मामला है। अग्रिम जमानत देने से मामले की निष्पक्ष और गहन जांच बाधित हो सकती है।

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