मुख्यपृष्ठस्तंभएक सेल्फी पेंग्विन के साथ!

एक सेल्फी पेंग्विन के साथ!

विमल मिश्र
मुंबई

पेंग्विन को आंखों में आंखें डालकर देखना है! चले आइए भायखला के रानीबाग चिड़ियाघर। वीरमाता जीजाबाई भोसले वनस्पति उद्यान व प्राणी संग्रहालय के हम्बोल्ट पेंग्विन अहाते में सेंट जेवियर कॉलेज के बीएससी छात्र सांद्रा परेरा और डोल्सी डेविड से बातचीत के बाद हमें हिम प्रदेश के सबसे निराले इस पक्षी के बारे में अपने कई भ्रम तोड़ने पड़ गए। मसलन, पेंग्विन हैं तो जरूर अंटार्कटिका से लाए गए होंगे। पानी के भीतर सांस लेते होंगे। उड़ते भी होंगे। …बिलकुल नहीं!
व्यूइंग गैलरी में आए दूसरे लोगों की तरह इन पेंग्विन की आपसी बातचीत सुनकर हम भी रोमांचित हो गए हैं। २०१६ में रानीबाग आए मोल्ट, फ्लिपर, पोपाय, आलिव, डोनाल्ड और डेजी जैसे नामधारी ये १८ पाखी केवल शून्य से ४० डिग्री नीचे के तापमान में ही नहीं रहते, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की ठंडक के अलावा अर्जेंटाइना, चिली और दक्षिण अफ्रीका की भीषण गर्मी में भी गुजारा कर लेते हैं। पक्षी होने से उनके पंख हैं, पर उड़ने के लिए नहीं, जमा देनेवाली सर्दी से बचाव के लिए। हां, सांस लेने पानी से ऊपर उन्हें भी आना पड़ता है …।
स्कूल पिकनिक का अंग बनकर आने और हाथी के हौदे पर सवार होकर घूमने की यादें रखनेवाले जो लोग यहां नाती-पोतों के साथ पिछले सालों में रानीबाग आए हों और नाउम्मीद होकर लौटे हो उनके लिए यहां कई नए अजूबे हैं। आनेवाला कल और भी कई सौगातों के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। अनारकली हाथी के साथ रायल बंगाल टाइगर शक्ति व करिश्मा और उनके बेटे जय व रूद्र इसी पुराने-नए युग की दास्तान हैं। रानीबाग में अभी १३० पशु हैं, ३०० पक्षी और ४० प्रजातियों की तितलियां। इनमें कई दुर्लभ और विलुप्तप्राय की श्रेणी में आते हैं। मसलन, एम्यु नामक दुर्लभ पक्षी, जो बड़ा होकर ५० किलो वजनी और १५ फुट तक ऊंचा हो सकता है।
रोजाना सात-आठ हजार लोगों का रानीबाग आना अब साधारण बात है। सप्ताहांत में तो यह तादाद १२ हजार पहुंच जाती है। तुर्रा यह कि पिछले वर्षों के मुकाबले फीस दस गुना, यानी ५० रुपए हो जाने के बावजूद भीड़ उमड़ी ही पड़ रही है। ३५,००० संख्या के साथ दर्शकों के लिहाज से एक बार कीर्तिमान बन चुका है। शनिवार-रविवार को यह तादाद १५,००० -२०,००० तक पहुंच जाती है। मई, २०२३ में ४,५०,००० दर्शकों के साथ इसने अपना पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। १९२२-२३ में दर्शकों की संख्या ने इसके रिकॉर्ड आंकड़ा छुआ। २३.७ लाख, ९.१ करोड़ रुपए की कमाई के साथ।
…तो धोबी तालाब में होता रानीबाग
विक्टोरिया गार्डन कहलाने वाले इस प्राणी उद्यान की शुरुआत १८३५ में शुरू हुई, जब गोरी सरकार ने एग्री हार्टिकल्चर सोसायटी ऑफ वेस्टर्न इंडिया को शिवड़ी का एक विशाल भूखंड बोटानिकल गार्डन बनाने के लिए भेंट किया, पर यहां गार्डन के साथ यूरोपियनों के लिए कब्रिस्तान भी बन गया। मौजूदा रानीबाग दरअसल, १८६१ में मझगांव का वह माउंट इस्टेट है, जिसे सरकार ने उद्यान बनाने के लिए उपहारस्वरूप भेंट किया था। शिवड़ी बोटानिकल गार्डन से फूल-पौधे लाकर यहां लगाए गए। जुलाई, १८६२ से जब इसने उद्यान का रूप लेना शुरू कर दिया। यहां १५० प्रजातियों के १८,०० वृक्ष थे।
उद्यान की नींव ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के प्रति अपनी भावनाओं को चिरस्थाई बनाने के ‌लिए १५ दिसंबर, १८५८ को टाउनहॉल में हुई सभा में जगन्नाथ शंकर शेठ, डॉ. दादाभाई नौरोजी, डॉ. भाऊजी लाड, सर गोकुलदास नाथूभाई, डॉ. जॉर्ज बर्डवुड, आदि दिग्गजों की मौजूदगी में पारित एक प्रस्ताव के रूप में रखी गई थी। इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी एक समिति को दी गई। मूल योजना के तहत एस्प्लेनेड क्षेत्र से चौपाटी तक के विस्तार में उद्यान के साथ एक संग्रहालय का निर्माण किया जाना था। आखिर, उंगली धोबी तालाब इलाके पर ही जाकर टिकी।
लॉर्ड एलफिंस्टन ने ४ अप्रैल, १८५९ को लिखे पत्र द्वारा धोबी तालाब में उद्यान निर्माण को मंजूरी दे भी दी थी कि अचानक सरकार की तरफ से सवाल उठ गया कि समुद्र के इतने करीब उद्यान के वृक्षों की रक्षा वैâसे संभव होगी। सरकार ने तब इस लिए भायखला का सुझाव दिया। आखिरकार, मामला लंदन में महारानी की अदालत में गया और लॉटरी भायखला के नाम पर खुल गई। म्यूजियम को नाम मिला ‘विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम’ और उद्यान को ‘विक्टोरिया गार्डन’।
१९ नवंबर, १८६२ को मुंबई के गवर्नर सर हेनरी बार्टल एडवर्ड फ्रेयर की पत्नी लेडी कैथेरीन फ्रेयर ने उद्यान का उद्घाटन किया। इस अवसर पर एक कालपात्र में भारत को ब्रिटिश शासन के तहत लाने संबंधी राजाज्ञा, तत्कालीन समाचार पत्र की एक प्रति, सिक्के, आदि हमेशा के लिए सुरक्षित कर दिए गए। क्लॉक टॉवर स्कॉट, मैक्लीलैंड एंड कंपनी द्वारा इतालवी शैली में पोरबंदर और नीले पत्थरों से निर्मित है। ५१,६५३ रुपए, जिसमें ३०, ००० रुपए सर ससून ने वहन किया था। दोपहर, शाम और रात की थीम पर तल माले के परकोटे का निर्माण किया मेसर्स ब्लैडफील्ड एंड कंपनी ने। २ मई, १८७२ को गवर्नर सिमोर फिट्जगार्ड ने इटालियन शैली में बनाई गई एक मंजिली इमारत का उद्घाटन किया। भारत का यह पहला सार्वजनिक उद्यान आरंभ में ३३ एकड़ में फैला हुआ था। १८८३ में एग्री हार्टिकल्चर सोसायटी के दीवालिया हो जाने के कारण इसकी देख-रेख की जिम्मेदारी मुंबई महानगरपालिका के हाथों में आ गई। १८८३ में इसमें प्राणी संग्रहालय का निर्माण हुआ। १८९० में १५ एकड़ का विस्तार पाकर यह और संपन्न हो गया। तब से इसका विस्तार और हुआ है। आज यहां के ५३ एकड़ क्षेत्र में ८५ प्रतिशत पर उद्यान है, बाकी में चिड़ियाघर।
क्लॉक टॉवर
वीरमाता जीजाबाई भोसले उद्यान में घुसते ही पहली जो चीज ध्यान खींचती है, वह है प्रवेश द्वार पर ७५ फुट ऊंचा डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना उसका क्लॉक टॉवर और फाउंटेन।
काला घोड़ा और एलिफेंटा
फोर्ट के ‘काला घोड़ा’ क्षेत्र ने अपना नाम सर एडगर बोकेम द्वारा गढ़ी, १२,५०० पौंड लागत से बनी पौने तेरह फुट ऊंची गहरे काले रंग की कांस्य अश्वारोही प्रतिमा से लिया है। १८७५ में निर्मित यह प्रतिमा इंग्लैंड के सम्राट एडवर्ड सप्तम की भारत यात्रा की स्मृति में स्थापित की गई थी। १८६३ में अंग्रेज उसे जहाज से इंग्लैंड के किसी म्यूजियम में भेज रहे थे कि क्रेन की चेन के टूट जाने से ‘हाथी’ खंडित हो गया।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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