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संपादकीय : आखिर वाढवण लाद ही दिया!

पालघर जिले में वाढवण बंदरगाह को लेकर स्थानीय किसानों, मछुआरों, भूमिपुत्रों का विरोध है, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विरोध के बावजूद बुधवार को वाढवण बंदरगाह को मंजूरी दे दी। इसलिए पालघर इलाके के तट पर भूमिपुत्रों का आक्रोश फूट पड़ने की आशंका है। प्रधानमंत्री मोदी के पास सरकार में बहुमत नहीं है। जनता ने उन्हें हरा दिया है। फिर भी यह आश्चर्य की बात है कि उन्हें यह नहीं लगता कि जनमत का आदर करते हुए निर्णय लिए जाने चाहिए। वाढवण बंदरगाह का विरोध राज्य के विकास या प्रगति का विरोध है, इस तरह की जो बात कही जाती है वह सही नहीं है। तटीय मछुआरे भाइयों का रोजगार डूब जाएगा, समुद्र की मछलियां खत्म हो जाएंगी और इसका असर रोजगार पर पड़ेगा। इसके अलावा क्षेत्र का कृषि उद्योग भी प्रभावित होगा। सरकार का कहना है कि ७६,२०० करोड़ की लागत वाला यह बंदरगाह भारत के समुद्री कंटेनरों को संभालने की क्षमता को दोगुना कर देगा, जिसके चलते १२ लाख नौकरियां पैदा होंगी। सरकार के इस बयान में कोई सच्चाई नहीं है। उरण, न्हावा शेवा बंदरगाह से आज किसे फायदा हो रहा है? बीच के दौर में इन बंदरगाहों के उद्योग को जबरदस्ती गुजरात के बंदरगाहों पर स्थानांतरित किया गया और ‘जेएनपीटी’ बंदरगाह को घाटे में लाने का प्रयास किया गया जो आज भी जारी है। यहां के भूमिपुत्रों को यह सपना दिखाकर लुभाने की कोशिश की जा रही है कि वाढवण बंदरगाह से १२ लाख नौकरियां मिलेंगी। सच तो यह है कि यह बंदरगाह समुद्र में मछलियों की ‘गोल्डन बेल्ट’ को नष्ट कर देगा और इस क्षेत्र में मछली पकड़ना बंद हो जाएगा। मछलियां नष्ट हो जाएंगी और हमें मछली के लिए गुजरात पर निर्भर रहना पड़ेगा। मछुआरों के घर खत्म हो जाएंगे। इस बंदरगाह से वाढवण समुद्र और तटीय जैव विविधता पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। वाढवण विकास के लिए यहां की कृषि, बागवानी भूमि का भी अधिग्रहण किया जाएगा। इससे खेती भी खत्म हो जाएगी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इस बात की जानकारी न हो यह आश्चर्य की बात है। यदि मुख्यमंत्री को वास्तव में महाराष्ट्र के भूमिपुत्रों की फिक्र है, तो उन्हें इस परियोजना से प्रभावित मछुआरों और किसानों के आक्रोश को दिल्ली दरबार तक पहुंचाना चाहिए। न केवल वाढवण, बल्कि मुंबई, दहाणू, वसई, विरार, तलासरी झाई तक के मच्छी विक्रेताओं ने भी वाढवण बंदरगाह के खिलाफ बिगुल बजा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी और उनके लोग प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जागरूक नहीं हैं। नाणार, रिफाइनरी मामले में भी उन्होंने कृषि, प्रकृति, पर्यावरण, मछुआरों (मत्स्य उद्योग) को बर्बाद करने का पैâसला किया और अब वाढवण में भी वही खेल खेला जा रहा है। वाढवण क्षेत्र में समुद्र में चट्टानों की संरचना को देखते हुए यह क्षेत्र मत्स्यबीज उत्पादन के लिए उर्वरक माना जाता है। यहां उत्तम किस्म के पापलेट, अन्य मछलियां और उनके बीज पैदा होते हैं। मुंबई और दक्षिण गुजरात के बीच मछली पकड़ने की यह बेल्ट मछलियों की सुवर्ण खान है और वाढवण के निर्माण से यह खान नष्ट हो जाएगी। इस बंदरगाह के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा। जल प्रवाह में बदलाव के कारण समुद्र का पानी तटीय गांवों में घुस जाएगा। परिणामस्वरूप, कई गांवों को विस्थापित होना पड़ेगा, लेकिन भले ही लोग बेरोजगार और विस्थापित हों, सरकार की जहरीली और हानिकारक परियोजनाएं थोपने की योजना स्पष्ट दिखाई देती है। परियोजना का विरोध करनेवाले भूमिपुत्रों को कल अर्बन नक्सली, माओवादी ठहराकर कुचल दिया जाएगा और मराठी भूमिपुत्रों का आक्रोश वाढवण बंदरगाह के समुद्र तल पर गाड़ दिया जाएगा। इस क्षेत्र के भूमिपुत्रों ने अपने-अपने क्षेत्र में तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र, दहाणू थर्मल पावर प्लांट, कई अन्य रासायनिक परियोजनाओं को स्वीकारा है। इन जहरीली परियोजनाओं से लोगों का स्वास्थ्य, कृषि भूमि, जल संसाधन खतरे में आ गया है, फिर भी ये परियोजनाएं कायम हैं। इसलिए यह आरोप गलत है कि यहां के लोग विकास का विरोध करते हैं। यहां के भूमिपुत्र न्याय और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। यह एक मृगतृष्णा है कि वाढवण बंदरगाह पूरा होने के बाद १२ लाख नौकरियां पैदा होंगी। मोदी हर साल २ करोड़ नौकरियां देनेवाले थे। जो एक लफ्फाजी साबित हुई। तो क्या वाढवण बंदरगाह के १२ लाख नौकरियों के सपने के लिए मछुआरों को अपना वाजिब रोजगार और व्यवसाय खो देना चाहिए? कोकण तट पर मछली पकड़ने वाले समुदाय के लिए यह एक बड़ा संकट है। समुद्र की कई परियोजनाएं उनके अस्तित्व पर ही हमला कर रही हैं। यह भूमिपुत्रों को महाराष्ट्र से बेदखल करने की एक बड़ी साजिश लगती है। लाचार मुख्यमंत्री और उनकी लाचार मंडली जुबान सिलकर बैठे हैं, जबकि विकास के नाम पर महाराष्ट्र के समुद्री तटों का विनाश जारी है। वे बकवास करते हैं कि उनकी असली शिवसेना है और वे ही बालासाहेब ठाकरे के विचारों के वारिस हैं, लेकिन ये लाचार भूल गए हैं कि असली शिवसेना की नीति भूमिपुत्रों के अधिकारों के लिए सत्ता को लात मारकर अन्याय के खिलाफ डटकर खड़े होना है। वाढवण बंदरगाह के मामले में कहा जाए तो शिवसेनाप्रमुख ने इस वाढवण बंदरगाह का विरोध ही किया था। मछुआरों और स्थानीय लोगों का विनाश करनेवाली इस परियोजना को समुद्र में डुबाने की उनकी भूमिका थी। हे लाचार शिंदे, क्या तुम्हें इसकी जानकारी नहीं है?

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