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प्रयागराज के बाद काशी के गंगा घाटों पर नागा साधु-संतों का हुआ जमावड़ा

उमेश गुप्ता/वाराणसी

प्रयागराज में जारी महाकुंभ में तीनों अमृत स्नान संपन्न हो चुके हैं। अब अखाड़ों के साधु-संत प्रयाग से काशी की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं। काशी में साधु-संतों का आगमन शुरू हो गया है। प्रयागराज में महाकुंभ की भव्यता के बाद अब वाराणसी के गंगा घाटों पर भी कुंभ जैसी आध्यात्मिक रौनक देखने को मिल रही है। यहां विभिन्न अखाड़ों के संतों ने डेरा जमा लिया है और साधना में लीन हो गए हैं।

बता दें कि विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत प्रयागराज में कुंभ में पावन संगम में डुबकी लगाने और तीनों अमृत स्नान के बाद सीधे महाशिवरात्रि से पहले वाराणसी पहुंचते हैं। काशी के गंगा घाटों पर पहुंचे साधु-संत अपनी परंपरागत साधना करते हैं। दरअसल काशी संपूर्ण आध्यात्मिक साधना का केंद्र है और जब तक यहां प्रवास नहीं किया जाता, तब तक महाकुंभ का महत्व पूरा नहीं होता।

एक मान्यता यह भी है कि काशी को मोक्षदायिनी नगरी माना जाता है और यहां प्रवास करने से साधना का विशेष फल प्राप्त होता है। हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक के कुंभों की तरह काशी भी आध्यात्मिक रूप से उतनी ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भगवान शिव की नगरी है।

काशी पहुंचने के बाद साधु-संत सबसे पहले काशी के कोतवाल भैरव महाकाल जी के दर्शन करते हैं। उसके बाद काशी विश्वनाथ महाराज के दर्शन करते हैं। भगवान शिव के दर्शन करने के बाद संत गंगा किनारे साधना में लीन हो जाते हैं। साधु-संत महाशिवरात्रि तक काशी में ही रहेंगे। 26 फरवरी को भोलेनाथ की शादी की बारात में शामिल होंगे। उसके बाद काशी से बारात का प्रसाद लेकर अपने स्थान की ओर प्रस्थान करेंगे।

महाकुंभ के बाद प्रयाग से काशी आना देवलोक से मृत्युलोक में वापस आना माना जाता है। महाशिवरात्रि तक साधु संत गंगा घाट पर ही प्रवास करेंगे। इस दौरान संत गंगा मैया के किनारे तपस्या और साधना करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन संत गंगा स्नान करते हैं और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हैं। इसके पश्चात सभी अखाड़ों के संन्यासी अपने मूल स्थान को लौट जाते हैं।

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