न हो पाईं समझौता

वो मोहब्बत थी
या फिर धोखा
जो ना हो पाईं
इक समझौता

कभी होकर भी रहा उसका
साँसों में चला उसके
वो मेरे क़रीब थे
मैं उसके करीब था

ख़ामोशी की लहरों में
होंठों के सिलवट पर
इन्तजार बनकर
खड़ा इक मोड़कर
क्या बेवजह मोहब्बत थी वो
क्या बेवजह शरारत थी वो
जो धोखा सिर्फ धोखा
न मौका न समझौता

उसे कहना चाहा दिल
पर कह नहीं पाया
वो मेरे हो नहीं पाए
मैं उसका हो नहीं पाया

बड़ी उम्मीद थी उससे
वो मेरे होकर रहेंगे
ख्यालों की इस दुनिया में
अपना घर बनाकर रहेंगे

थोड़े से झगड़े
थोड़े से नाराजगी
बातों, बातों में हँसी मजाक
लगती ये आवारगी

वो मेरा यार
मैं उसका यार
बाकी दुनिया
लगती बेकार

– मनोज कुमार
गोण्डा उत्तर प्रदेश

अन्य समाचार