मुख्यपृष्ठनए समाचारसभी साजिशें धरी रह गईं! ... झारखंड सोरेन का ही!

सभी साजिशें धरी रह गईं! … झारखंड सोरेन का ही!

हेमंत की पत्नी ने कहा, मैंने इतना मुश्किल चुनाव कभी नहीं देखा
सामना संवाददाता / रांची
झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की दूसरी बार वापसी हो रही है। खबर लिखे जाने तक ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ के नेतृत्व वाला गठबंधन विधानसभा की ८१ सीटों में से ५७ पर आगे चल रहा है। कल जीत सुनिश्चित होने के बाद एक अखबार से बात करते हुए हेमंत सोरेन ने इस जीत का श्रेय अपनी पत्नी कल्पना सोरेन और उनकी टीम को दिया।
हेमंत सोरेन ने कहा, ‘हमने अपना होमवर्क कर लिया था और अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे। हम जानते थे कि यह बहुत कठिन मुकाबला होने वाला है इसलिए हम अपनी टीम के साथ जमीन पर काम करने के लिए निकल पड़े थे। यह बेहतरीन टीम वर्क था और हमने वह मैसेज दिया जो हम देना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘आपने देखा कि लोकसभा चुनाव में हमने वैâसा प्रदर्शन किया (जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने १४ में से पांच सीटें जीती थीं)। अगर मैं जेल से बाहर होता तो हम और भी बेहतर प्रदर्शन करते। उस समय, मेरी पत्नी कल्पना सोरेन ‘वन-मैन आर्मी’ के रूप में काम कर रही थीं, इस बार हम दो थे। ४९ वर्षीय हेमंत सोरेन का सियासी करियर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। खासतौर पर विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें कानूनी लड़ाई से लेकर पार्टी में आंतरिक कलह तक का सामना करना पड़ा है। इस सबके बावजूद हेमंत सोरेन और जेएमएम मजबूती से उभरी और खुद को आदिवासी अधिकारों के मजबूत पैरोकार के रूप में स्थापित किया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरन का जन्म १० अगस्त १९७५ को हजारीबाग के पास नेमरा गांव में हुआ था। हेमंत सोरेन ने पटना हाई स्कूल से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। हेमंत सोरेन पर उनके पिता शिबू सोरेन का अहम प्रभाव रहा है। शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सह-संस्थापक थे। हालांकि, हेमंत सोरेन को शुरुआत में अपने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं देखा जाता था। हेमंत को बड़े भाई दुर्गा को शिबू सोरेन के उत्तराधिकारी के तौर पर माना जाता था, लेकिन उनकी अचानक २००९ में हुई मौत की वजह से हेमंत सोरेन के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी आई, उन्होंने बखूबी उसे संभाला भी। हालांकि, हेमंत का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है। साल २०२३ की शुरुआत में भूमि घोटाले से जुड़े कथित धनशोधन मामले में उनका नाम उछला। इस साल ३१ जनवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कुछ देर बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। झारखंड उच्च न्यायालय ने जून में यह कहते हुए हेमंत की जमानत अर्जी मंजूर कर ली कि उनके अपराध करने की कोई संभावना नहीं थी। हेमंत लगातार कहते आए हैं कि उनकी गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित थी और वह उनकी सरकार को गिराने की साजिश का शिकार हुए, लेकिन इस बार के चुनाव में उन्होंने भाजपा को तब हराया जब भारतीय जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत के साथ राज्य के अंदर चुनावी मुहिम में उतरी थी। इन चुनौतियों के बावजूद राज्य की आदिवासी आबादी के हक के लिए उनकी मुखर आवाज ने उनकी राजनीतिक पहचान को मजबूती दी और यही कारण है कि वो एक बार फिर राज्य की सत्ता पर काबिज हुए।

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