सभी वॉल अश्लील

छीन लिए हैं फोन ने, बचपन से सब चाव।
दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव॥
मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन।
दामन थामे फोन का, बैठे हैं सब मौन॥
नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।
रिश्तों से ज्यादा हुआ, आज फोन से चाव॥
गूगल में अब खो गयी, रिश्तों की पहचान।
पहले जैसे है कहां, भाव और सम्मान॥
बढ़ती जाती मीडिया, खतरों का संसार।
सोच समझकर मित्रगण, साझा करें विचार॥
कोई करता ट्वीट है, कोई इंस्टा रील।
बात काम की कम दिखे, सभी वॉल अश्लील॥
दिन भर दुनिया ढूंढते, करी न खुद की खोज।
गूगल की आगोश में, हम खोए हैं रोज॥
‘सौरभ’ सोशल मीडिया, देता गहरे घाव।
बेमतलब की बात से, सामाजिक बिखराव॥
कहां हृदय मिलते भला, हर दिल बैठा चोर।
मुखपोथी-संबंध अब, अर्थहीन हर ओर॥
-डॉ. सत्यवान सौरभ

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