विमल मिश्र
मुंबई
श्रावण महीना शुरू हो गया है और अंबरेश्वर मंदिर में शिवभक्तों के काफिले उमड़ने लगे हैं। श्रुतियां अंबरनाथ के ११वीं शताब्दी के इस शिव मंदिर को महाभारत काल का बताती हैं। यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है।
‘मानवीय हाथों से बना ऐसा चमत्कार मुंबई के मुहाने पर मौजूद है और मुंबईवाले ही उसे नहीं जानते-यह अपने-आप में एक चमत्कार है’, जाने-माने पत्रकार प्रकाश जोशी अपना विस्मय रोक नहीं पाते और यह सच है। काम पर आते-जाते विश्व विरासत छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को आप रोज ही देखा करते हैं। गाहे-बगाहे गेटवे ऑफ इंडिया, एलिफेंटा केव्स, मरीन ड्रॉइव और चौपाटी भी हो आते हैं। सिद्धिविनायक और बाबुलनाथ को सिर झुकाना भी नहीं भूलते। पर, याद कीजिए, पहाड़ की तलहटी में बसे, मलंगगढ़ की विहंगम छटा दिखाने वाले अंबरनाथ के शिव मंदिर के दर्शन करने पिछली बार आप कब गए थे?
एक हजार वर्ष पुराना अंबरनाथ का यह मंदिर इतिहास, कला और संस्कृति की अद्भुत मिसाल है। यूनेस्को द्वारा घोषित सांस्कृतिक विरासत। विश्वभर में ऐसे कुल २१८ ठिकाने हैं। इनमें भारत के पास महज २५ हैं और महाराष्ट्र में तो केवल चार।
पांडव आए थे यहां
अंबरेश्वर कोकण क्षेत्र का प्राचीनतम शिव मंदिर है, जिसके आस-पास कई नैसर्गिक चमत्कार छिटके हुए हैं। गर्भगृह में पूजा कराने के बाद पुजारी लाला पंडित हमें उस कुंड के पास ले गए, जिसकी गर्म पानी की धारा के पास ही एक देवी मंदिर के अतिक्रमण से अब अवरुद्ध है। यहीं पास बंद पड़ी एक मील लंबी उस भूगर्भीय गुफा का मुहाना है, जिसके बारे में बताते हैं कि एक वक्त उसका रास्ता पंचवटी तक जाता था। अंबरेश्वर और आस-पास ऐसे कई अन्य रहस्य प्रकट होने की राह देख रहे हैं। कुछ वर्ष पहले जब इस बात का पता लगाने के लिए अंबरनाथ में खुदाई की गई कि कोई प्राचीन नगर तो यहां की गर्द में नहीं दबा है तो इस धारणा की पुष्टि करने वाले बर्तन-भांडों व अन्य साज-सामानों के रूप में कई प्रमाण मिले। अंबरनाथ की जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं। लोकोक्ति है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के सबसे दूभर कुछ वर्ष अंबरनाथ में बिताए थे और यह पुरातन मंदिर उन्होंने एक ही रात में विशाल पत्थरों से बनवा डाला था। कौरवों द्वारा लगातार पीछा किए जाने के भय से यह स्थान छोड़कर उन्हें जाना पड़ा। मंदिर फिर पूरा नहीं हो सका। आसमान के साथ स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कराने वाले गर्भगृह के जो मंडप से २० सीढ़ियां नीचे हैं, ठीक ऊपर शिखर का न होना इस धारणा को पुष्ट करता है। मौसम के झंझावात झेलता मंदिर फिर भी सिर तानकर खड़ा है। बगल से बहती वालधुनी नदी बाढ़ में जब भी विकराल रूप में होती है, उसका पहला गुस्सा इमली और आम के पेड़ों से घिरे इस परिसर पर ही फूटता है।
शिल्पकला का दुर्लभ नमूना
परिसर में मिले प्राचीन शिलालेख के प्रमाण स्थानीय काले पत्थर से बनी तीन ड्योढ़ियों वाले मंदिर के मौजूदा ढांचे को १०६० ईस्वी में क्षेत्र में राज करने वाले शिलाहार राजा चित्तराजा का निर्माण पुष्ट करते हैं, जिसका पुनर्निर्माण उनके पुत्र महामंडलेश्वर मंवणि राजदेव ने करवाया। वाराह अवतार, दुर्गा सहित कुछ देवी-देवताओं, पौराणिक पात्रों और नारी मूर्तियों को छोड़कर मंदिर की बाहरी नक्काशियां अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। बाहर दो नंदी मौजूद हैं। भीतर मुख्य मूर्ति त्रैमस्तिकी है, जिसके घुटने पर एक नारी रूप है- संभवत: शिव और पार्वती। शीर्ष भाग पर शिव नृत्य मुद्रा में दिखते हैं। स्तंभों और छत की सुंदर नक्काशी अभी भी कदम रोक लेती है। इतना मोहक पौराणिक मंदिर मुंबई के इतने पास है, फिर भी अगर आपने देखा नहीं। तो फिर सोचिए, दुर्भाग्य किसका है!
महाशिवरात्रि पर श्रद्धालुओं के रेले
शिवसेना अध्यक्ष और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पहल पर शुरू हुआ शिव महोत्सव पिछले कई वर्षों से मंदिर का मुख्य आकर्षण है, जिसमें नाना पाटेकर जैसे अभिनेता (दिवंगत अभिनेता शम्मी कपूर भी यहां के बड़े भक्त थे), प्रसिद्ध गायक-गायिकाएं और संगीतकार बाबा के दरबार में हाजिरी लगाया करते हैं। मंदिर महाशिवरात्रि में रवानी पर होता है, जब श्रद्धालुओं के रेले के रेले महाराष्ट्र के विभिन्न भागों से यहां उमड़ा करते हैं। बाबा का आशीर्वाद ही है कि करीब १० लाख की इस तादाद को नियंत्रित करने के लिए महज २०० पुलिस के जवान होने के बावजूद आज तक मंदिर ने कोई दुर्घटना नहीं देखी। हर वर्ष कांवड़िया पदयात्रा का आयोजन करने वाली डोंबिवली की ॐ शिवसाई विश्वकर्मा सेवा संस्था के एक सदस्य ने बताया, ‘महाशिवरात्रि, श्रावण व माघ में लगने वाले मेले और तीन दिन के एक आर्ट फेस्टिवल को छोड़ दें, तो ‘बोल बम-बम भोले’ का सामूहिक जयघोष सुनने के लिए कान तरस जाते हैं।’
यहां तीन बार आ चुकी विदेशी वैâथी ब्रोबैक मंदिर के बाहरी भाग पर उत्कीर्ण मूर्तियों को छू-छूकर बीते कालखंड में पहुंचने की कोशिश में थीं-बताने लगीं, ‘१९९२ में जब पहली बार यहां आई, यहां बिल्कुल सूना था। अब तो यहां स्कूलों के बच्चे भी दिखाई दे रहे हैं।’ पर, बस इतना ही। स्कूलों की ये ट्रिप्स, शोध के लिए कुछ विदेशी व छात्र, स्थानीय भक्त और भूले-भटके आ जाने वाले पर्यटक- बस यही अब विश्व में अपने किस्म के अनूठे इस मंदिर की संपत्ति हैं।
स्वर्णिम अतीत की छाया
कुल मिलाकर अंबरेश्वर मंदिर और आस-पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जो आश्वस्ति पैदा करता हो। यह प्रतीति पास आते ही शुरू हो जाती है। मंदिर को छूकर निकल रही सदानीरा वालधुनी (वादवन) नदी की अविरल धारा आस-पास के प्रदूषणकारी उद्योगों के उत्पात से नंग-धड़ंग बच्चों की मस्तीखोरी वाली गंध मारती संकरी गंदी नाली बन गई है। मंदिर तक पहुंचाने वाली सड़कों की हालत संतोषजनक नहीं है और मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था में छिद्र ही छिद्र दिखते हैं। कई पुराकथाओं से संबंध रखने वाला अंबरेश्वर खंडहर बनकर आज अपने स्वर्णिम अतीत की छाया भर रह गया है। काश! पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बाहर लगे सूचना पट पर ‘अंबरेश्वर’ (या ‘अमरनाथ’) के संरक्षित स्मारक होने की घोषणा करने के साथ इसकी देखभाल के लिए भी कुछ किया होता! सुशोभीकरण और आकर्षण वृद्धि तो दूर की बात, मंदिर का अस्तित्व ही इस समय खतरे में है। संरक्षण- दरअसल, अंबरनाथ के सन्मुख सबसे बड़ा मुद्दा इस समय यही है। भीतर लगे सुंदर पच्चीकारी वाले लौह स्तंभ और खूबसूरत पत्थर अपने जीर्ण होने की चुगली करते हैं। छतों और दीवारों को गिरने से रोकने के लिए जगह-जगह टेक लगाए गए हैं। असल में भूमिझा शैली के सर्वोत्कृष्ट निर्माणों में से एक यह मंदिर किसी भी प्रयास के बजाय निर्माण की कला की वजह से ही काल के थपेड़े और हर अन्याय व झंझावात सहते लगभग १,००० वर्ष बाद भी टिका हुआ है। चाहें, तो इसे भोलेनाथ की कृपा भी कह लीजिए।
अंबरेश्वर आज एक दशक पहले से बेहतर हालत में है तो इसमें न्यायपालिका की बड़ी भूमिका है, जिसने अतिक्रमणों और अवैध निर्माणों से भग्न स्थिति में पहुंचे मंदिर को कुछ संभाला है। कुछ समय पहले १५ करोड़ रुपए की निधि से मंदिर परिसर से होकर गुजरने वाली वालधुनी नदी को भूमिगत करने, उस पर पुल के निर्माण, प्रवेश द्वार पर कमान के निर्माण सहित समूचे मार्ग के निर्माण, स्वच्छता गृह, पार्किंग, उद्यान, प्रदर्शनी, थिएटर, कुंड के सौंदर्यीकरण, वॉक-वे जैसी सुविधाओं वाली योजनाएं चरणबद्ध ढंग से लागू की गई हैं, जिनसे इस पूरे क्षेत्र की हालत सुधारने में मदद मिलेगी। स्थानीय नगर परिषद के पूर्व नगराध्यक्ष सुनील चौधरी बताते हैं, ‘अंबरनाथ को महाराष्ट्र ही नहीं, देश का पर्यटन ठिकाना बनाया जा सकता है, बशर्ते हमारी सरकारें इसमें रुचि लें’। छोटा-सा म्यूजियम, पर्यटक आवास व सुविधाएं, परिवहन का प्रबंध और थोड़ा-सा प्रचार, अंबरनाथ को मुंबई का एक मुख्य आकर्षण बनाने के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। क्या महाराष्ट्र का पर्यटन विभाग इसे सुन रहा है!
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)