लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए सरकार को चार काम करने होंगे। इसके लिए सबसे पहले संविधान के ५ अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा। इसमें विधानसभाओं के कार्यकाल और राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रावधानों के अलावा जन प्रतिनिधित्व कानून व सदन में अविश्वास प्रस्ताव को लाने के नियमों को बदलना होगा।’
लोकसभा चुनाव की घोषणा के पूर्व भाजपा रोज एक शिगूफा छोड़ रही है। सीएए के नोटिफिकेशन के बाद इसी कड़ी में कल ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर बनाई गई समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। यह रिपोर्ट कितनी बड़ी है, इसे इसी से समझा जा सकता है कि इसे १८,६२६ पन्नों में समेटा गया है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि सभी मतदाता हर स्तर के चुनावों में अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए एक साल के भीतर वोट देंगे। इसमें दो चरण होंगे। पहला, लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे और दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएंगे। मगर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की राह इतनी आसान नहीं है।
समिति की सिफारिशों में लिखा गया है कि ‘समिति की सर्वसम्मत राय है कि एक साथ चुनाव होने चाहिए’। सबसे पहले लोकसभा चुनाव और राज्यों के चुनाव एक साथ होने चाहिए और उसके बाद १०० दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने चाहिए। मगर १४० करोड़ की आबादी वाले देश में इसे व्यवहार में उतारना इतना सरल नहीं है। संविधान के जानकारों का मानना है कि दोनों चुनाव एक साथ कराने के लिए सरकार को चार काम करने होंगे। इसके लिए सबसे पहले संविधान के ५ अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा। इसमें विधानसभाओं के कार्यकाल और राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रावधानों को बदलना होगा। इसके अलावा जन प्रतिनिधित्व कानून और सदन में अविश्वास प्रस्ताव को लाने के नियमों को बदलना होगा। यह बताना होगा कि किसी सरकार को हटाकर कौन सी नई सरकार बनाई जाए, जिसमें सदन को विश्वास हो, ताकि पुरानी सराकर गिरने के बाद भी नई सरकार के साथ विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक चल सके। वैसे अतीत में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो चुके हैं। पर आजादी के बाद की स्थिति अलग थी। १९६७ तक यह सिलसिला चला। पर एक साथ कई राज्यों की सरकारों के गिरने के बाद यह संतुलन खत्म हो गया।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लिए बड़ी संख्या में ईवीएम मशीनों की जरूरत होगी। फिलहाल देश में करीब १० लाख ईवीएम मशीनें मौजूद हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के तहत निर्वाचन आयोग को कुल ३५ लाख ईवीएम मशीनों की जरूरत पड़ेगी। इसमें करीब १,००० करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च होगा। नई मशीनों को बनाने में वक्त और पैसा दोनों लगेगा। इस वक्त एक ईवीएम की कीमत करीब २० हजार और एक वीवीपीएटी की कीमत भी करीब इतनी ही है। इन मशीनों के निर्माण में एक साल या इससे भी ज्यादा वक्त लगेगा। इसके अलावा एक साथ चुनाव कराने में एक साथ काफी वर्क फोर्स और लॉजिस्टिक की जरूरत होगी, जिस पर लाखों करोड़ रुपयों का खर्च होगा। राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस तरह से कुल मिलाकर यह खर्च लाखों करोड़ रुपए में पहुंच जा सकता है।
इस बारे में लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचारी का कहना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मुद्दा व्यवहारिक है ही नहीं। इसके लिए एक आधार यह होना चाहिए कि देश की सारी विधानसभाएं एक साथ भंग हों, जो कि संभव नहीं है। असल में विधानसभा समय से पहले भंग करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है, केंद्र के पास नहीं, जबकि केंद्र ऐसा तभी कर सकता है, जब किसी वजह से उक्त राज्य में अशांति हो या ऐसी वजह मौजूद हो कि राज्य की विधानसभा को केंद्र भंग कर सके और ऐसा सभी राज्यों में एक साथ नहीं हो सकता। किसी भी राज्य की विधानसभा को कार्यकाल पूरा किए बिना भंग करने से एक संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। यह संघीय ढांचे तथा संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ होगा। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ में एक व्यवहारिक दिक्कत यह भी है कि आपको स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक साथ कराने होंगे। ऐसे में जनता कन्फ्यूज हो सकती है कि एक बार में एक बटन दबाए या तीन।
केंद्र-राज्य के बीच अधिकारों को लेकर बहस
सभी चुनावों में मतदाता, मतदान केंद्र, ईवीएम, सुरक्षा जैसी चाजें तो समान होती हैं, लेकिन ग्राम पंचायत या नगरपालिका / नगर निगम के चुनाव कराना राज्य निर्वाचन आयोग का काम है, जो केंद्र से बिल्कुल अलग है। ऐसी स्थिति में भी केंद्र और राज्य के बीच अधिकारों को लेकर बहस छिड़ सकती है और यह भी एक संवैधानिक संकट खड़ा कर सकता है। इस तरह से संविधान संशोधन के मुद्दे पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव हो सकता है। हिंदुस्थान में चुनाव गरीबों के लिए एक उत्सव होता है। इस दौरान बैनर-पोस्टर और प्रचार सामग्री बनाने, चिपकाने वालों से लेकर ऑटोरिक्शावाले तक को काम मिलता है। इससे गरीबों के घर का चूल्हा जलता है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के लागू होने से उन्हें ५ साल में एक बार ही कमाने का मौका मिलेगा। पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने एक बार कहा था कि जब वे किसी कार्यक्रम में गए थे तो वहां किसी ने एक नारा लगाया ‘जब-जब चुनाव आता है, गरीब के पेट में पुलाव आता है’। यह गरीबों के लिए चुनाव के महत्व को बताता है।’ ऐसे में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ गरीबों के पेट पर लात मारने जैसा ही है।