मानसून के आते ही बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सर्दी, खांसी जुकाम आदि सामान्य बीमारियां लोगों को अपनी चपेट में लेने लगती हैं। खैर, महाराष्ट्र में मानसून आने में अभी समय है, लेकिन नागरिकों को सावधान होने की आवश्यकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि मानसून आने के बाद गर्मी से राहत मिलती है तो सावधान होने की क्या जरूरत है? तो बता दें कि एककोशिकीय जीव दिमाग खाने वाला अमीबा की वजह से केरल में १५ साल के बच्चे की मौत हो गई है। वैसे इस एककोशिकीय जीव अमीबा के कारण दुनियाभर में कई लोग अपनी जान गवां चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेगलेरिया फाउलेरी जिसे अमीबा कहा जाता है वह मिट्टी और ताजे पानी जैसे झीलों, नदियों और झरनों में रहता है। जब अमीबा युक्त पानी नाक में जाता है तो यह मस्तिष्क में संक्रमण का कारण बन सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल करीब ३ लोग इस जानलेवा संक्रमण से संक्रमित होते हैं।
ऐसे बनाता है शिकार
जब अमीबा युक्त पानी नाक के जरिए शरीर में जाता है तो यह लोगों को संक्रमित करता है। वैसे दूषित पानी पीने से लोग नेगलेरिया फाउलेरी यानी अमीबा से संक्रमित नहीं हो सकते। यह आमतौर पर तब होता है, जब लोग झीलों और नदियों में तैरते हैं, गोता लगाते हैं। अमीबा नाक से घुसता है और मस्तिष्क तक जाता है, जहां यह मस्तिष्क टिश्यू को नष्ट कर देता है। अमीबा से प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस नामक संक्रमण होता है, जो कि जानलेवा है।
संक्रमण के लक्षण
अमीबिक मेनिंगोएन्सेफ्लाइटिस के पहले लक्षण आमतौर पर ५ दिन बाद शुरू होते हैं, लेकिन ये १ से १२ दिनों के भीतर भी दिखाई दे सकते हैं। इसमें सिरदर्द, बुखार, मतली या उल्टी होती है। संक्रमण बढ़ने पर लक्षणों में गर्दन में अकड़न, दौरे, मस्तिष्क का काम न करना और कोमा शामिल हैं। लक्षण शुरू होने के बाद, रोग तेजी से बढ़ता है और आमतौर पर १ से १८ दिनों के भीतर मृत्यु हो सकती है।
बचाव के तरीके
लोगों को इस बात के लिए सचेत रहना चाहिए कि इस संक्रमण का खतरा हमेशा रहता है। गर्मी और बरसात के महीनों में इसकी संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में तैरते समय ध्यान रखें कि नदी और झरनों का पानी नाक में न जाए। गर्मी और बरसात में नदी, झरनों और झील में गोता लगाने से बचना चाहिए। झरनों में अपना सिर भिगाने से बचना चाहिए, क्योंकि इसके रास्ते नाक तक पानी पहुंच सकता है।