फिरोज खान / मुंबई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमृत काल में बैंकों का बुरा हाल नजर आ रहा है। बैंकों के कर्ज डूबने की समस्या बढ़ती जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक, हालात काफी चिंताजनक बनते जा रहे हैं। आलम यह है कि लोग लुटे जा रहे हैं और गरीब जनता बर्बाद हो रही है। लोगों की जीवनभर की कमाई पलभर में हाथों से निकलती जा रही है।
ताजा मामला न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले के रूप में सामने आया है। लोन के नाम पर १२२ करोड़ रुपए का बैंक में घोटाला हुआ है। इससे पहले पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक में लोन के नाम पर ६,५०० करोड़ रुपए का प्रâॉड हुआ था। पिछले हफ्ते ईडी ने मुंबई और उसके आस-पास ८ जगहों पर छापेमारी की। कार्रवाई में पता चला कि आरोपियों ने बैंक ऑफ इंडिया और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को कर्ज के नाम पर १४२.७२ करोड़ रुपए का चूना लगाया है। अगर हम पूरे देश की बात करें तो मोदी सरकार के ५ सालों में १ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के बैंक घोटाले हुए हैं और १९ हजार से ज्यादा बैंक धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं।
एसबीआई का ८४ हजार २७६ करोड़ का ग्रॉस एनपीए
नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) की बात करें तो इसका आंकड़ा काफी भयावह है। ३१ मार्च २०२४ तक आंकड़ों के हिसाब से सबसे ज्यादा ८४ हजार २७६ करोड़ रुपए का ग्रॉस एनपीए एसबीआई का है, जबकि यह बैंक देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक है। दूसरे नंबर पर पंजाब नेशनल बैंक है। इस बैंक का एनपीए ५६ हजार ३४३ करोड़ रुपए है। अन्य बैंकों का आंकड़ा जोड़ा जाए तो २०२२ तक एनपीए का आंकड़ा ५.४ ट्रिलियन था, मतलब एक लाख करोड़।
लोन की आड़ में किया जाता है बैंक घोटाला
-घोटालों में उद्योगपति, बिल्डर और नेता शामिल
जांच एजेंसियां देश के कई उद्योगपतियों द्वारा किए गए बैंक घोटालों की जांच कर रही हैं। इन मामलों में नीरव मोदी और मेहुल चोकसी द्वारा किया गया १,२०० करोड़ रुपए का घोटाला शामिल है। सबसे अहम बात यह है कि बैंक घोटाला लोन की आड़ में किया जाता है। इनमें उद्योगपति-बिल्डर और नेता शामिल हैं।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, २०१८ तक देश के विभिन्न बैंकों में एक लाख करोड़ रुपए के २३ हजार से ज्यादा बैंक घोटालों का पता चला है। यह जानकारी तब सामने आई, जब आरटीआई द्वारा सूचना मांगी गई। आरबीआई के मुताबिक, २०२१ से २०२२ तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ४० हजार करोड़ रुपए घोटालों की भेंट चढ़ गए। साल २०२० से २०२१ में यह आंकड़ा ८१ हजार करोड़ रुपए था।
बहरहाल, पिछले १० सालों से बैंकों के सुधार की बात जोर-शोर से की जा रही है। सबकुछ ऑनलाइन होगा। किसी भी प्रâॉड की कोई गुंजाइश नहीं होगी। इस तरह का बयान रिजर्व बैंक, वित्तमंत्री और वित्त सचिव करते आए हैं। बड़े-बड़े भाषण होते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं। इतना जरूर हुआ है कि सुधारों के बजाय घोटालों की रफ्तार और तेज हो गई है।
एक लाख करोड़ का एनपीए
साल २०२२ तक के आंकड़ों के मुताबिक, सभी बैंकों का मिलाकर एनपीए एक लाख करोड़ था। आम तौर पर ९० दिनों तक कर्जदार की तरफ से किसी भी तरह भुगतान या किश्त अदा नहीं किया गया तो कर्ज को एनपीए में डाल दिया जाता है।