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…और बुजुर्ग ने स्टेशन पर ही दम तोड़ दिया! … मुंबई हाई कोर्ट के आदेश को रेलवे का ठेंगा! … मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन में एंबुलेंस की भारी कमी

अक्सर बेसिक मेडिकल सुविधाएं भी नहीं होती एंबुलेंस में!
सामना संवाददाता / मुंबई
६९ वर्षीय रमाशंकर िंसह को यदि समय रहते बांद्रा रेलवे स्टेशन से अस्पताल पहुंचा दिया गया होता तो उनकी जान बच जाती। मंगलवार २४ दिसंबर को जब उन्हें तकलीफ के चलते बांद्रा स्टेशन में मेडिकल सहायता के लिए उतारा गया, तब दुर्भाग्यवश एंबुलेंस में डॉक्टर नहीं था। ड्राइवर ने बिना डॉक्टर के अस्पताल जाने से इनकार कर दिया।
सिंह ने शाम ५ बजे मरीन लाइंस से बोरीवाली जानेवाली लोकल ट्रेन पकड़ी। ग्रांट रोड और मुंबई सेंट्रल स्टेशनों के बीच उन्हें सीने में दर्द और बेचैनी महसूस हुई। सहयात्री मेहुल संघराज ने रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) हेल्पलाइन ‘१५१२’ पर कॉल किया। प्रभादेवी स्टेशन पर स्थिति बिगड़ने पर संघराज ने सिंह के बेटे हरि मोहन और १०८ हेल्पलाइन को कॉल किया। हरि मोहन ने सलाह दी कि वे बांद्रा स्टेशन पर उतरकर उन्हें हिंदूजा अस्पताल ले जाएं।
बांद्रा स्टेशन पर शाम ५.४० बजे एंबुलेंस के पास पहुंचने पर एंबुलेंस चालक ने अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि डॉक्टर की मंजूरी जरूरी है। इस बीच सिंह को स्ट्रेचर पर लिटाने के बाद उनकी हालत और बिगड़ गई। डॉ. हैरिस शेख, जो एंबुलेंस में ड्यूटी पर थे, उन्होंने कहा कि उन्हें देर से सूचना दी गई। ‘ड्राइवर को मैंने तुरंत नजदीकी भाभा अस्पताल में ले जाने को कहा, लेकिन देरी के कारण मरीज की हालत बिगड़ गई।’ एंबुलेंस में ड्यूटी पर तैनात थे, डॉ. हैरिस शेख ने कहा कि उन्हें देर से सूचना दी गई। ड्राइवर को मैंने तुरंत नजदीकी भाभा अस्पताल में ले जाने को कहा, लेकिन देरी के कारण मरीज की हालत बिगड़ गई। हिंदूजा अस्पताल में शाम ६.४५ बजे पहुंचने पर सिंह को मृत घोषित कर दिया गया।

नायक: समीर जवेरी
आज हम एमएमआर के सभी रेलवे स्टेशनों पर एंबुलेंस देखते हैं इसका श्रेय जाता है समीर जावेरी को। जावेरी ने २००८ में मुंबई उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी। जावेरी नहीं चाहते थे कि किसी को भी उन की तरह कष्ट सहना पड़े। १९९८ में ग्रांट रोड रेलवे स्टेशन के ट्रैक क्रॉस करते वक्त उनका एक्सीडेंट हो गया था। उन्हें अपने दोनों पैर खोने पड़े। अपनी याचिका में उन्होंने उपनगरीय रेलवे नेटवर्क पर यात्रियों की सुरक्षा में कमी के बारे में चिंता जताते हुए तत्काल चिकित्सा उपचार की मांग की।

रेलवे गंभीर नहीं -एड. दरम्यान सिंह
रेलवे पैसेंजर्स वेलफेयर एसोसिएशन के एडवोकेट दरम्यान सिंह बिस्ट उपनगरीय हार्बर के एक रेलवे स्टेशन जुई नगर की एक घटना का जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि किस तरह ‘दोपहर का सामना’ के एक पत्रकार ने एंबुलेंस उपलब्ध न होने की सूरत में रेल एक्सीडेंट में घायल एक बुजुर्ग को ऑटोरिक्शा में बिठाकर अस्पताल पहुंचाया। रेलवे स्टेशन के कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी यहां तक की पुलिस भी एंबुलेंस न होने का बहाना बनाती रही। यदि उन बुजुर्ग को ऑटोरिक्शा में अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता तो उनकी जान जा सकती थी।

उच्च न्यायालय का आदेश
दुर्घटना के बाद ‘गोल्डन आवर’ यानी पहले घंटे में उपचार उपलब्ध कराना कितना महत्वपूर्ण होता है, इस बात की गंभीरता को समझते हुए, जनवरी २००९ में उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को सभी रेलवे स्टेशनों पर एंबुलेंस उपलब्ध कराने का निर्देश दिया, जिसमें डॉक्टर भी मौजूद रहें। पांच साल बाद मार्च २०१४ में, सरकार ने आखिरकार एंबुलेंस सेवाएं शुरू कर दीं।

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