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उत्तर की बात : उपचुनाव के नतीजों के बाद सपा-बसपा ने शुरू की पार्टी की ओवरहॉलिंग

रोहित माहेश्वरी लखनऊ

उत्तर प्रदेश में हालिया उपचुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए निराशाजनक रहे। चुनाव नतीजों से सपा की राजनीति को गहरा झटका लगा है। बसपा तो उपचुनाव लड़ती ही नहीं थी। पहली बार बसपा ने उपचुनाव लड़ा था, जिसमें उसका प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा है। नौ में से ६ सीटों पर उसके प्रत्याशी अपनी जमानत गवां बैठी। उपचुनाव को २०२७ में विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। ऐसे में कमजोर प्रदर्शन के बाद सपा और बसपा ने पार्टी संगठन की
ओवरहॉलिंग की तैयारी शुरू कर दी है।
उपचुनाव के नतीजों के बाद सपा के २०२७ की उम्मीदों को झटका लगा है और पार्टी पूरी तरह से बैकफुट पर चली गई है। सपा अब इससे उबरने के लिए पार्टी के निष्क्रिय पदाधिकारियों को साइड लाइन करने की तैयारी में है। उनकी जगह पार्टी के लिए पूरी ईमानदारी से काम करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं को पार्टी में जगह दे सकती है। सूत्रों की मानें तो सपा में इसको लेकर मंथन चल रहा है।
बीते लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यूपी में पहले और देश में तीसरी सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी रही है, लेकिन छह महीने में ही सपा अपने खराब परफॉर्मेंस से फिर से जूझ रही है। उपचुनाव में सपा अपनी सीटें भी हार गई है। कुंदरकी सीट जो एक तरह से समाजवादी पार्टी का गढ़ बन गई थी, वहां सपा का बहुत खराब प्रदर्शन रहा है। मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के बावजूद सपा उम्मीदवार १ लाख ४० हजार के करीब वोट के अंतर से चुनाव हार गया है। इस हार से सपा के लिए बहुत खराब मैसेज गया है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी छंटनी कर सकती है। सूत्रों की मानें तो सपा निष्क्रिय पदाधिकारियों से जिम्मेदारी वापस ले सकती है। साथ ही सपा ७ से ८ जिलों के पार्टी संगठन में भी बड़े बदलाव कर सकती है। इस पर हाईकमान मंथन कर रहा है।
अगर बसपा की बात कि जाए तो कभी उपचुनाव न लड़ने वाली बसपा ने इस बार सभी नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार, लेकिन, वह कुछ खास नहीं कर पाई या यूं कहें कि बसपा को उबारने में सहायक साबित नहीं हो सके, तो गलत नहीं होगा। २०१९ लोकसभा चुनाव के बाद से बसपा लगातार नीचे की ओर बढ़ती दिख रही है। प्रदेश में ९ सीटों पर हुए उपचुनाव में किसी भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई, इतना ही नहीं यूपी की दो सीटों पर तो मायावती की बसपा नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के उम्मीदवार से भी पीछ रही है। मायावती ने बसपा को दोबारा खड़ा करने के लिए पार्टी संगठन में ओवरहॉलिंग शुरू कर दी है। वर्ष २०१९ में लोकसभा चुनाव हुए। इसमें बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया। इस चुनाव में बसपा को १० सीटें हासिल हुर्इं। इसके बाद वर्ष २०२२ में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन समाप्त कर लिया। इस चुनाव में इसका असर भी दिखा। बसपा को महज एक सीट पर जीत मिली, जो कि बसपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था। इसके बाद वर्ष २०२४ के आम चुनाव में भी बसपा ने अकेले लड़ने की घोषणा की। सभी ८० सीटों पर पार्टी ने अपने प्रत्याशी उतारे। मेहनत भी की गई। नतीजा आए तो बसपा के साथ ही उसके समर्थकों के लिए भी चौंकाने वाले थे। बसपा का खाता भी नहीं खुल सका था।
प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वालों की मानें तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही इकलौती ऐसी पार्टी है, जो यूपी में बीजेपी को टक्कर दे सकती है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि सपा ने बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह से यूपी में जीत दर्ज की, जिससे सपा का मनोबल बढ़ा हुआ था। सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी लगातार पार्टी को मजबूत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
वहीं अखिलेश को मालूम है कि अगर २०२७ में सरकार बनानी है तो पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भरना होगा। ऐसे में पार्टी संगठन को भी मजबूत करना होगा। जिलास्तर की इकाई में सक्रिय नेताओं और कार्यकर्ताओं को जगह देनी होगी, क्योंकि बीजेपी बूथ स्तर पर अपने आपको मजबूत करने में जुटी है। संगठन में भी बदलाव करने जा रही है। ऐसे में सपा ईमानदार, मेहनती और सक्रिय कार्यकर्ताओं को पार्टी में जगह देकर २०२७ विधानसभा चुनाव में बीजेपी को टक्कर दे सकती है। फिलवक्त सपा में उपचुनाव के नतीजों पर मंथन-चिंतन के साथ आगे की रणनीति पर विचार चल रहा है। ऐसे में अब देखना है कि २०२७ यूपी विधानसभा चुनाव में सपा क्या कमबैक कर पाएगी?
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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