मुख्यपृष्ठस्तंभउत्तर की बात : यूपी उपचुनाव में पीडीए को मजबूत कर...

उत्तर की बात : यूपी उपचुनाव में पीडीए को मजबूत कर रहे अखिलेश

रोहित माहेश्वरी लखनऊ

यूपी उपचुनाव भाजपा-सपा के लिए नाक का सवाल बन गया है। लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रख रही है, तो वहीं सपा भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही। सपा प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए के सहारे चुनाव मैदान में हैं। इस पीडीए फॉर्मूले ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन की बड़ी जीत का मार्ग प्रशस्त किया। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और लोकसभा की ३७ सीटों पर उसे सफलता मिली। इसके सहयोगी, कांग्रेस ने छह सीटें जीतीं, जिससे एनडीए के ३६ के मुकाबले उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन सांसदों की संख्या ४३ हो गई।
समाजवादी पार्टी ने इन उपचुनाव में एक बार फिर एग्रेसिव पीडीए कार्ड खेलते हुए सबसे ज्यादा ९ में से चार सीटों फूलपुर, कुंदरकी, सीसामाऊ और मीरापुर पर मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारा है। दो सीटों पर दलित और ३ सीटों पर ओबीसी उम्मीदवारों पर दांव लगाया है, जबकि भाजपा-आरएलडी गठबंधन ने ९ में से ६ सीटें दलित और पिछड़ों को दी हैं, जबकि तीन सीटों पर ब्राह्मण और ठाकुर चेहरों को टिकट दिया है।
असल में उपचुनाव में अखिलेश यादव ने कुर्मी और यादव पॉलिटिक्स पर फोकस किया है, क्योंकि अखिलेश यादव को पता चल गया है कि अगर सीटें जीतनी हैं तो ओबीसी के इन दोनों वोटरों पर अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी।
उत्तर प्रदेश में अगर जातीय समीकरण की बात करें तो १७-१९ फीसदी सवर्ण वोटर रहते हैं, जिनमें १० फीसदी ब्राह्मण, ५ फीसदी राजपूत, २ फीसदी, वैश्य २ फीसदी भूमिहार और अन्य जाति हैं। सवर्ण वोटर हमेशा से भाजपा का कोर वोटर रहा है। वहीं, अगर हम यूपी में ओबीसी की बात करें तो ४२ से ४३ फीसदी इनकी आबादी है, जिसमें १० फीसदी यादव, ५ फीसदी कुर्मी, ५ फीसदी मौर्या, ५ फीसदी जाट, ४ फीसदी राजभर, ३ फीसदी लोधी, २ फीसदी गुर्जर, ४ फीसदी निषाद, केवट, मल्लाह और अन्य ६ फीसदी जातियां हैं। वहीं दलित वोटर्स २१ फीसदी हैं।
अखिलेश यादव यह बात समझ गए हैं कि पीडीए के जरिए ओबीसी वोटरों को साधना ही ज्यादा फायदेमंद है, इसीलिए उन्होंने यूपी उपचुनाव में इसका खास ख्याल रखा है। उन्होंने ४ मुस्लिम, ३ पिछड़े (ओबीसी) और २ दलित प्रत्याशी उतारे हैं। यूपी की ९ सीटों पर यादव-कुर्मी वोटरों की संख्या ठीक-ठाक है। ओवरऑल ओबीसी वोटरों की बात करें तो अखिलेश यादव को फायदा हो सकता है।
यूपी उपचुनाव में अगर ओबीसी वोटर बंटा नहीं तो अखिलेश यादव भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यादव वोटर जहां सपा के साथ पूरी दृढ़ता के साथ रहता है तो वहीं अन्य ओबीसी का एक धड़ा भाजपा के पक्ष में भी दिखाई पड़ता है। इस बार अखिलेश यादव पूरी ताकत के साथ पीडीए के जरिए ओबीसी वोटरों को जोड़ने में जुड़े हुए हैं। हर मंच से अखिलेश यादव पीडीए को मजबूत करने और ओबीसी हक की बात करते हैं। अखिलेश को यह पता है कि अगर ओबीसी ने साथ दिया तो भाजपा की खटिया खड़ी हो सकती है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में २०२४ के लोकसभा चुनावों में भाजपा को झटका लगने के बाद पार्टी में खलबली मच गई थी। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए थे। अब उपचुनावों में योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ हरकत में आ गए और उपचुनावों की तैयारियां शुरू कर दी थी। मुख्यमंत्री ने उपचुनाव को पार्टी की प्रतिष्ठा बहाल करने और विरोधियों को यह संदेश देने के अवसर के रूप में देखते हुए खुद नेतृत्व करना शुरू कर दिया। और यह संदेश देने की कोशिश की कि उनका करिश्मा अभी खत्म नहीं हुआ है।
अखिलेश यादव बूथ समितियों को मजबूत कर रहे हैं, स्थानीय नेताओं के बीच विवादों को सुलझा रहे हैं, पार्टी नेताओं को मतदाता सूचियों की जांच करने और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सोशल मीडिया की उपस्थिति को मजबूत करने का निर्देश दे रहे हैं। वह पार्टी नेताओं को उन गांवों और मोहल्लों में बैठकें करने का निर्देश दे रहे हैं, जिन्हें भाजपा का मजबूत आधार माना जाता है। बीजेपी के हर कदम से अखिलेश पूरी तरह सतर्क हैं।
सपा की कोशिश है कि पीडीए के नाम पर चुनाव हो और वह ज्यादा-से-ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रहें, लेकिन अगर कहीं कोई सीट जीतने की संभावना नहीं बनती तो उस सीट पर दलित और पिछड़ों को एक संदेश जरूर दिया जाए। इस बार का मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। अखिलेश यादव इसे पीडीए बनाम भाजपा का नाम दे रहे हैं, जबकि भाजपा इस बार ओबीसी को ही केंद्र में मानकर पूरा चुनाव  लड़ रही है।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

अन्य समाचार