रोहित माहेश्वरी लखनऊ
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव के नेतृत्व, कार्यक्षमता, सूझबूझ और राजनीतिक समझ की बदौलत लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद अब सपा राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की कार्ययोजना पर काम कर रही है। इसके लिए उत्तर प्रदेश के अलावा वे अब दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने की ठानी है। जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनावों में उम्मीदवार उतारकर सपा अपनी जमीन तैयार करागी। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में ३७ सीटें जीतकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग और खास पहचान बनाई है। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के यूपी में अपने इतिहास के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तक पहुंचने के बाद अखिलेश यादव के राजनीतिक कद की तुलना उनके पिता मुलायम सिंह यादव से की जाने लगी है।
समाजवादी पार्टी ने यूपी में लगातार दो विधानसभा चुनाव हारे हैं। २०१४ और २०१९ लोकसभा चुनावों में भी पार्टी पांच सीटों पर ही सिमटी रही। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व के सामने अखिलेश की राजनीति लगातार कमजोर हो रही थी। अखिलेश के सामने परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण थीं। लेकिन उनके पास समर्पित कार्यकर्ता भी थे। अखिलेश के पीडीए के फार्मूले ने राजनीति के समीकरण बदलने का काम किया। लोकसभा के भीतर संख्या बल के हिसाब से वह देश की तीसरे नंबर की बड़ी पार्टी है। सपा को अखिलेश यादव अब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसी कारण अभी हाल में जहां भी चुनाव होंगे वह अपने उम्मीदवार जरूर उतारने का प्रयास करेगी।
ज्ञात हो कि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल है। वह यूपी में कई बार सरकार बना चुकी है। इसके साथ ही वह मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान के अलावा दक्षिण के राज्यों में भी विधानसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमा चुकी है। सपा ने मध्य प्रदेश में सबसे अच्छा प्रदर्शन २००३ के चुनाव में था, जब उसके सात विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। महाराष्ट्र में पार्टी काफी साल से चुनाव लड़ती आ रही है। वर्तमान में उसके वहां दो विधायक भी है।
जम्मू-कश्मीर में पार्टी की लांचिंग के बाद अब जोरदार तरीके से चुनाव लड़ने की योजना बनी है। सियासी जानकार बताते हैं कि सपा की कांग्रेस से भले इस मुद्दे पर कोई बात न हुई हो, लेकिन उसकी नजर जम्मू-कश्मीर की मुस्लिम बहुल सीटों पर है। कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांप्रâेंस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है। ऐसे में सपा को केंद्रशासित प्रदेश में गठबंधन में कोई सीट मिलने की संभावना कम है। लेकिन सपा इसके बावजूद चुनाव में ताल जरूर ठोकेगी। उधर, हरियाणा में भी समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में थी। लेकिन वह वहां किन्हीं कारणों से कांग्रेस से गठबंधन नहीं हो सका। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने परिपक्वता का परिचय देते हुए ‘एक्स’ पर पोस्ट किया है कि हरियाणा चुनाव में ‘इंडिया एलायंस’ की एकजुटता नया इतिहास लिखने में सक्षम है। हमने कई बार कहा है और एक बार फिर दोहरा रहे हैं व आगे भी दोहराएंगे कि ‘बात सीट की नहीं जीत की है’। उन्होंने आगे कहा है कि हरियाणा के विकास व सौहार्द की विरोधी ‘भाजपा की नकारात्मक, सांप्रदायिक, विभाजनकारी राजनीति’ को हराने में ‘इंडिया एलायंस’ की जो भी पार्टी सक्षम होगी, हम उसके साथ अपने संगठन और समर्थकों की शक्ति को जोड़ देंगे। बात दो-चार सीटों पर प्रत्याशी उतारने की नहीं है, बात तो जनता के दुख-दर्द को समझते हुए उनको भाजपा की जोड़-तोड़ की भ्रष्टाचारी सियासत से मुक्ति दिलाने की है, साथ ही हरियाणा के सच्चे विकास और जनता के कल्याण की है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, अखिलेश वर्तमान राजनीति में बड़े और जोखिमपूर्ण फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। वहीं गठबंधन धर्म निभाना भी उन्हें बखूबी आता है। कई मौकों पर ये जाहिर भी हो चुका है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में जिस तरह वो परिपक्वता और समझदारी के साथ पैâसले, गठबंधन धर्म और संतुलित बयानबाजी कर रहे हैं। बदलते वक्त के साथ अखिलेश के भाषणों, बयानों और निर्णयों में परिपक्वता और गंभीरता का प्रतिशत पहले से ज्यादा दिखाई देता है। यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि आने वाले समय में यूपी ही नहीं देशभर में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी का डंका बजेगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)