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उत्तर की बात  : यूपी उपचुनाव के नतीजों से तय होगी आगे की लड़ाई!

रोहित माहेश्वरी लखनऊ

उत्तर प्रदेश की ९ विधानसभा सीटों पर २० नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान हो चुका है। उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर है। उपचुनाव के नतीजे २०२७ के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि इन उपचुनाव के नतीजों से सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन सारा खेल राजनीतिक धारणा का है। २०२४ के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सीटें बेहद कम हो गई थीं, जिसकी वजह से बीजेपी अकेले बहुमत का आंकड़ा छूने में नाकाम रही है। लोकसभा चुनाव में यूपी में कांटे की लड़ाई और विपक्ष को मिली बढ़त के लगभग ६ महीने बाद पश्चिम से पूरब तक यह चुनाव हो रहा है इसलिए सत्तापक्ष इसे मोमेंटम वापसी और विपक्ष मोमेंटम बनाए रखने के मौके के तौर पर देख रहा है। इस उपचुनाव की अहमियत इससे समझी जा सकती है कि भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी के अलावा बहुजन समाज पार्टी ने भी सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। भाजपा के आक्रामक प्रचार का क्रम तो जारी रहा है, पहली बार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी उपचुनाव में सभी सीटों पर पसीना बहाया है। सीएम योगी एक-एक सीट की रणनीति के साथ मैदान में उतरे।
साल २०२४ के चुनाव नतीजों के बाद यूपी में यह पहला चुनाव हो रहा है, जिसे यूपी में सत्ताधारी दल बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर मैदान में उतरी। दोनों ही दलों ने उपचुनाव में ज्यादा से ज्य़ादा सीटें जीतने के लिए पूरी ताकत झोंकी। बीजेपी की तरफ से कमान खुद योगी आदित्यनाथ ने संभाली तो सपा की ओर अखिलेश चुनावी वैंâपेन में जुटे थे। दोनों ही नेता यह बात अच्छी तरह से समझते हैं कि उपचुनाव के नतीजे उनके सियासी भविष्य को तय करने वाले होंगे। यूपी में जिन ९ सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं, उनमें से ५ सीटों पर बीजेपी और उनके सहयोगी दलों ने २०२२ के आम विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। जबकि ४ विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की थी। हालांकि मीरापुर सीट रालोद ने सपा के साथ गठबंधन में जीती थी, लेकिन अब रालोद ने बीजेपी से गठबंधन कर लिया है।
सभी ९ सीटों पर भाजपा और उसके स्टार प्रचारकों ने खूब पसीना बहाया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह ने जमीनी रणनीति और तैयारियों को बार-बार परखा है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने चुनाव की घोषणा के पहले ही सभी ९ विधानसभाओं में कथित विकास योजनाओं के जरिए जमीन तैयार करने की कवायद शुरू कर दी थी। चुनाव की घोषणा के बाद भी उन्होंने सभी सीटों पर जनसभाएं की हैं। इस दौरान विकास कार्यक्रमों, गरीब कल्याण की योजनाओं के साथ ही एकता की अपील भी उन्होंने `बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे..’ के अपने चिर परिचित नारे से धुव्रीकरण की कोशिश की है। विकास संग हिंदुत्व की धुरी पर ही भाजपा की उम्मीदें टिकी हैं। योगी आदित्यनाथ ने ५ दिनों में १५ रैली की हैं तो वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने १४ चुनावी सभाएं की।
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में असरदार रहे पीडीए का दांव उपचुनाव में भी सपा ने खेला है। उम्मीदवारों के चयन में भी इसकी छाप दिखी है। पिछले उपचुनावों और इस बार में सपा के लिए रणनीतिक अंतर अखिलेश की सक्रियता का है। आजमगढ़ लोकसभा की अपनी खाली की गई सीट पर हुए उपचुनाव में भी सभा न करने वाले अखिलेश इस बार सभी ९ सीटों पर पहुंच रहे हैं, जिससे बाद में कोई पछतावा न रहे।
लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की सीटें ही आधी नहीं हुई हैं, बल्कि नतीजों ने भाजपा, सहयोगी दलों और उनके समर्थकों के `अजेय’ होने के विश्वास की जमीन भी दरकाई है। इसलिए, उपचुनाव को सरकार-संगठन `विश्वास वापसी’ के मौके के तौर पर देख रहा है। हरियाणा के परिणाम के बाद यूपी के उपचुनाव में बेहतर नतीजों की तलाश २०२७ के लिए आत्मविश्वास के लिहाज से भी अहम है। उपचुनाव के नतीजे से सत्ता के खेल बनने और बिगड़ने का खतरा नहीं है, लेकिन यूपी के सियासी भविष्य का पैâसला जरूर हो जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उपचुनाव में अखिलेश यादव ने जिस तरह रणनीति के तहत उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव प्रचार किया है, उसका फायदा सपा को मिलेगा। वहीं २३ नवंबर को चुनाव नतीजे भले ही किसी के पक्ष में रहें, लेकिन इस दिन के बाद से यूपी में २०२७ की लड़ाई का नया अध्याय शुरू हो जाएगा।
(लेखक स्तंभकार, सामाजिक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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