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अनुभव: ‘उठो मेरे शेरों तुम इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो’

कविता श्रीवास्तव

देश में अठारहवीं लोकसभा के लिए आज मतदान के सातवें और अंतिम चरण का मतदान हो रहा है। यह मतदान आज शाम को पूरा हो जाएगा। इसी के साथ देश के दक्षिणी छोर पर कन्याकुमारी में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपना विश्राम और ध्यान भी पूरा हो जाएगा, जो वे पिछले ४८ घंटों से कर रहे हैं। अब सभी को ४ जून का इंतजार है, जब मतगणना होगी और बहुप्रतीक्षित चुनावी परिणाम घोषित होंगे। लगभग डेढ़ महीने के चुनावी संघर्ष के प्रचार का दौर बीते गुरुवार की शाम थम गया था। उसी दिन शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के दक्षिणी छोर के समुद्री तट पर स्थित कन्याकुमारी पहुंच गए। उन्होंने वहां समुद्र के पांच सौ मीटर भीतर स्थित शिलाओं पर बने स्वामी विवेकानंद स्मारक में अपना ४८ घंटे का ध्यान शुरू किया। उनके पीछे दौड़ने वाले मीडियाकर्मियों ने इसी पर सबका ध्यान खींचने की कसरतें शुरू कर दीं। वैâमरे लेकर सब तैनात हो गए। विपक्ष ने इसी प्रचारनुमा पैंतरेबाजी पर आपत्ति उठाई, क्योंकि कोई भी ध्यान एकांत में होता है। वहां किसी की दखलअंदाजी नहीं होती है और उसका प्रचार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और चुनाव की प्रक्रिया अभी जारी है। चुनावी परिणाम आने तक आचार-संहिता की विभिन्न शर्तों राजनीतिक लोगों पर लागू रहती हैं। विरोधी दलों ने प्रधानमंत्री की इस ध्यान-साधना के माध्यम से प्रचार किए जाने और उसका मतदान में लाभ उठाने की आशंका जताई। इसी बात को लेकर विपक्ष में आपत्ति उठाई। स्वयं मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में भी मतदान बाकी है इसीलिए लोगों ने चुनावी स्टंट भी बताया है। यही वजह है कि वैâमरे आदि उनसे दूर रखने की विपक्ष ने मांग उठाई। उनके ध्यान से संबंधित खबरों को चुनावी प्रचार बताया और चुनाव आयोग से शिकायत करने की बात उठी। दो वर्ष पूर्व मैं भी आकर्षक कन्याकुमारी के इस समुद्री तट पर इसी स्वामी विवेकानंद स्मारक पहुंची थी। मोटरबोट से समुद्र में पांच सौ मीटर दूर ऊंची शिलाओं पर मैने भी वहां शांत परिसर में बैठकर ध्यान लगाने की सुखद अनुभूति प्राप्त की थी। मैंने भी उसी ध्यान कक्ष में कुछ समय बिताया था। वहां बिल्कुल कम रोशनी में बैठकर `ॐ’ की आकृति पर ध्यान लगाया। वहां बिल्कुल खामोशी थी। कोई किसी से बात भी नहीं कर रहा था। किसी दूसरे की ओर देखने की आवश्यकता भी नहीं थी। बिल्कुल शांत होकर एकाग्रचित होकर मन लगाकर ध्यान करने से वाकई वहां शांति मिलती है। नई ऊर्जा का संचार होता है और मनोबल बढ़ता है। तमिलनाडु में इस समुद्र तट पर ही भगवती कुमारी अम्मन मंदिर भी है। यह स्थान भारत की भूमि के दक्षिणी सिरे पर बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर के संगम पर स्थित है, जहां दूर-दूर तक समुद का संगम प्रकृति की विशालता और अद्भुत सुंदरता का स्पष्ट दर्शन होता है। किंवदंती है कि मंदिर का अभिषेक ऋषि परशुराम ने किया है। यह मंदिर देवी का शक्तिपीठ भी है। यहां माता सती का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था। कुछ विद्वान मानते हैं कि यहां माता का ऊर्ध्व दांत गिरा था। मोदी जी ने ध्यान लगाने से पहले इस मंदिर में दर्शन किया। मैंने भी किया था और अनेक लोग करते हैं। जब वहां गई थी, तब मैंने जाना कि स्वामी विवेकानंद पश्चिमी दर्शन सहित विभिन्न विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह भारत के पहले हिंदू सन्यासी थे, जिन्होंने हिंदू धर्म और सनातन धर्म का संदेश विश्वभर में पैâलाया। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की सर्वोच्चता स्थापित की। ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने कन्याकुमारी के समुद्री तट पर समुद्र के भीतर स्थित इन्हीं शिलाओं पर ध्यान लगाया था। उन्हीं के सम्मान में लंबे संघर्ष के बाद समुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने १९७० में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। साथ ही तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानंद स्मारक शिला है। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल भी है। मैंने अपने स्कूली दिनों में पढ़ा था कि स्वामी विवेकानंद अब तक के सबसे महान आध्यात्मिक पुरोधा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि दिल और दिमाग के बीच संघर्ष में, अपने दिल की सुनो। हभ सब यह इतिहास भी जानते ही हैं कि १९वीं सदी के दार्शनिक और लेखक स्वामी विवेकानंद ने १८९३ में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में भारत की आध्यात्मिक ख्याति को दुनिया के सामने रखा। उनमें अद्भुत ज्ञान था, जो यहीं पर विवेकानंद को प्राप्त हुआ था। किंवदंतियां ये भी कहती हैं कि इसी चट्टान पर देवी कन्याकुमारी ने भगवान शिव की पूजा की थी। यह चट्टान भारत ही नहीं दुनिया में विशेष रूप से संरक्षित भाग है। स्मारक विभिन्न स्थापत्य शैलियों का एक सुंदर मिश्रण प्रदर्शित करता है। श्रीपद मंडपम और विवेकानंद मंडपम स्मारक में खोजी जाने वाली दो संरचनाएं हैं। परिसर में स्वामी विवेकानंद की आदमकद कांस्य प्रतिमा भी है। यह स्थान बिल्कुल मनोरम है और आपको आश्चर्यचकित कर देगा। स्वामी विवेकानंद के बारे में पुस्तकों में पढ़ी बातें याद आती हैं। उन्होंने कहा था कि उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है। तुम तत्व के सेवक नहीं हो। शक्ति जीवन है तो निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है और संकुचन मृत्यु है। दरअसल, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं ज्ञान का खजाना हैं। वे आत्मविश्वास, ज्ञान की खोज, आत्म-सुधार, दूसरों की सेवा और सार्वभौमिक भाईचारे के महत्व पर जोर देते हैं। उनका आदर्श वाक्य, `उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए,’ आज भी दुनियाभर में लाखों लोगों को प्रेरित करता है।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)

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