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हाई कोर्ट की फटकार के बाद महाधिवक्ता की नियुक्ति

रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान हाईकोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकार ने राजस्थान के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) की नियुक्ति कर दी है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजेंद्र प्रसाद को महाधिवक्ता बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। दो दिन पहले जोधपुर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए सरकार से महाधिवक्ता व अतिरिक्त अधिवक्ताओं की नियुक्ति को लेकर 5 फरवरी तक जवाब मांगा था। उसके अगले ही दिन सरकार ने एडवोकेट जनरल की नियुक्ति कर दी। सीनियर एडवोकेट राजेंद्र प्रसाद वसुंधरा राजे सरकार में अतिरिक्त महाधिवक्ता थे। उन्होंने 1985 से वकालत शुरू की थी।
गौरतलब है कि एडवोकेट जनरल की नियुक्ति के मामले को लेकर एडवोकेट रविंद्र कुमार माथुर ने याचिका पेश की थी, जिसमें लिखा था कि सरकार बनने के करीब दो महीने बीत जाने के बाद भी महाधिवक्ता व अतिरिक्त अधिवक्ताओं की नियुक्ति नहीं हुई है। उच्च न्यायालय ने आदेश जारी कर कहा था कि राज्य की ओर से प्रभावी और पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं किया जा रहा है। एजी व एएजी की नियुक्ति में देरी के संबंध में न्यायालय को अवगत कराने के लिए राजस्थान राज्य के कानून सचिव को 24 जनवरी को बुलाया गया था।
उस समय कानून सचिव ने हाईकोर्ट से नियुक्ति के लिए कुछ समय मांगा था। इस बात को काफी दिन बीत गए, लेकिन एजी व एएजी की नियुक्ति नहीं हो पाई थी। हाई कोर्ट ने देरी का कारण जानने के लिए मुख्य सचिव सुधांश पंत को भी तलब किया था। पंत ने वीसी के जरिए कोर्ट में उपस्थित होकर कहा था कि सरकार जल्द ही नियुक्तियां करेगी। यह मुद्दा सरकार के लिए प्राथमिकता पर हैं। उसके बाद से ही सरकार में एजी की नियुक्ति को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो गया था।
हाई कोर्ट में सरकार से जुड़े सभी मामलों की पैरवी एजी व एएजी की ओर से की जाती है, लेकिन पिछले दो महीनों ने सरकार से जुड़े हुए मामलों की तारीख पर हाई कोर्ट में सरकार की पैरवी नहीं हो पाई। ऐसे में इन मामलों को हाई कोर्ट को आगे बढ़ाना पड़ा था। महाधिवक्ता और अतिरिक्ति महाधिवक्ताओं के साथ अधीनस्थ अदालतों में पीपी की नियुक्ति पूरी तरह से राजनीतिक होती है। सरकार अपनी विचारधारा के वरिष्ठ वकीलों को इन पदों पर नियुक्त करती हैं। महाधिवक्ता (एजी) इनमें सबसे बड़ा पद होता है। ऐसे में पहली नियुक्ति महाधिवक्ता की होती है। उसके बाद एएजी, जीए, पीपी व अन्य पदों पर नियुक्तियां होती हैं।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की पहली कैबिनेट बैठक 18 जनवरी को हुई थी। बैठक में कैबिनेट ने एजी की नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को अधिकृत कर दिया था। सूत्रों के अनुसार, इसके तुरंत बाद हाई कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता आरके अग्रवाल के पास उनकी सहमति के लिए भी फोन आया था। इसके बाद उन्हें बधाई तक दे दी गयी थी, लेकिन उनके नाम का आधिकारिक आदेश जारी नहीं हो पाया था। सूत्रों की मानें तो आरएसएस ने एजी के पद के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता जीएस गिल का नाम आगे किया था। अचानक वरिष्ठ अधिवक्ता आरके अग्रवाल का नाम सामने आने से आरएसएस ने नाराजगी भी जताई थी। हालांकि, अब महाधिवक्ता की नियुक्ति होने से मामले का पटाक्षेप हो गया हैं। मगर जिस तरीके से सरकार के शपथ लेने के 51 दिनों बाद तक महाधिवक्ता की नियुक्ति नहीं होने से हाई कोर्ट के सामने सरकार को सफाई देनी पड़ी, उससे सरकार की भारी किरकिरी तो हो ही चुकी है।

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