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क्या मुंबई-उपनगरों के सरकारी अस्पताल आम लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं? —भरतकुमार सोलंकी

 

क्या यह विडंबना नहीं हैं कि मुंबई, जो देश की आर्थिक राजधानी है, के उपनगरों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति इतनी खराब है? आज दक्षिण मुंबई की तुलना में उपनगरों में आबादी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन क्या इस बढ़ती आबादी की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी अस्पतालों का बुनियादी ढांचा पर्याप्त है?

उपनगरों में स्थित राजावाड़ी अस्पताल, कांदिवली का शताब्दी अस्पताल, मुलुंड और घाटकोपर का बीएमसी अस्पताल जैसी संस्थाओं में सुविधाओं की कमी आम जनता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है? क्यों इन अस्पतालों में जरूरी मेडिकल उपकरण, जैसे MRI, CT स्कैन और डायलिसिस मशीनों की पर्याप्त संख्या नहीं है? क्यों इन उपकरणों के रखरखाव की जिम्मेदारी अक्सर उपेक्षित की जाती हैं, जिसके कारण मरीजों को या तो लंबा इंतजार करना पड़ता हैं या निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है?

क्या यह सच नहीं हैं कि मुंबई के उपनगरों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है? कांदिवली, बोरिवली, मलाड और मुलुंड-भांडुप जैसे इलाकों में, जहां मध्यम और निम्न आय वर्ग की आबादी का बड़ा हिस्सा रहता है, वहां सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की अनुपलब्धता का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि वह इन इलाकों में पर्याप्त स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति करे ताकि लोगों को समय पर इलाज मिल सके?

स्वच्छता और रखरखाव की स्थिति भी उपनगरीय अस्पतालों में चिंताजनक हैं। क्यों राजावाड़ी और शताब्दी जैसे अस्पतालों के वॉर्ड गंदगी और भीड़भाड़ से भरे रहते हैं? क्यों मरीजों को बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वच्छ बिस्तर, साफ पानी और शौचालय जैसी चीजों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता हैं? क्या यह उन लाखों करदाताओं के साथ अन्याय नहीं है जो सरकार से इन सुविधाओं की उम्मीद रखते हैं?
इसके अलावा, क्यों उपनगरों के अस्पतालों में पर्याप्त दवाइयों और आपातकालीन सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की जाती? क्या यह समय नहीं हैं कि सरकार उपनगरीय अस्पतालों को दक्षिण मुंबई के अस्पतालों की तर्ज पर उन्नत करे? क्यों उपनगरों के अस्पतालों को बजट और संसाधनों के मामले में प्राथमिकता नहीं दी जाती, जब उपनगरों में रहने वाली आबादी दक्षिण मुंबई से कहीं अधिक है?

यह सवाल केवल सरकार से नहीं, बल्कि हर उस नागरिक से हैं जो मुंबई के उपनगरों में रहता है। क्या उपनगरों के लोग अपनी आवाज उठाकर इन मुद्दों को सही मंच तक ले जाने के लिए तैयार हैं? क्या हम अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराने का साहस करेंगे?

आखिरकार, यह समझना जरूरी हैं कि स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत जरूरत नहीं, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी हैं। क्या उपनगरीय मुंबई के लोग अपने और अपने परिवार के बेहतर स्वास्थ्य के लिए इन सवालों को उठाएंगे, या वे इस स्थिति को अपनी नियति मानकर चुप रहेंगे?

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